वृन्दावन – ९

२१

 

धनी रंगिली मन्दिर में आनन्दित होकर बैठी होंगी । सखियां उन्हें घेरी हुई होंगी । सब मिलकर कितने हंसी-मज़ाक करोगी । क्या मैं वह दृश्य देख पाऊंगी ?

 

माता ब्रजेश्वरी चन्दनकला के हाथ में नीले रंग का वसन देंगी, और जल्दी से रोहिनी माता का हाथ पकड़कर रंगिली मन्दिर में आयेंगी । श्यामा सखी को देखकर यशोदा मैया  पूछेंगी, “ यह किसकी सखी है ? कुछ जानी पहचानी सी लग रही है ! ” कुन्दलता जवाब देगी, “ सुनो माता ब्रजेश्वरी, यह ललिता सुन्दरी की बुआ की बेटी है । यह बहुत ही चतुरा है । यह साहार में रहती है । राधा को देखने के लिये यहां आयी है ।“ 

 

आनन्दित होकर मां यशोदा श्यामा सखी से कहेंगी, “सुन बेटी श्यामा, तु सचमुच आनन्द का धाम है !  तेरे रूप पर मैं निछावर जाऊं । थोड़े से पक्वान भोजन कर लेती, तो मेरा दिल तृप्त होता ।“

 

कपटिनी श्यामा मूंह नीचा करके कहेगी, “ मैं अपने घर में भोजन करके आयी हूं; मुझे भूख नहीं है ।“ अब ब्रजरानी तुम्हें प्यार से गोद में खींच लेंगी ।  तुम्हारा वेश रचना कर के कितनी मीठी मीठी बातें करेंगी । यशोदा मैया इतनी आनन्दित होंगी कि वे सभी सखियों को वसन, भुषण, माला और चन्दन उपहार देंगी । वह दिन कब आयेग जब मैं उन सखियों को सजाऊंगी ?

 

कितनी मस्ती भरी बातों की लहरें छुटेंगी । क्या मैं उन्हें सुन पाऊंगी ?

 

फिर तुम यशोदा मैया के चरणों में दण्डवत करके घर ्लौटोगी । तुम्हारे साथ कुन्दलता और श्यामा सखी भी होंगी । सभी सखियों में हंसी के फव्वारे छुटेंगे । जावट पहुंचकर झट से तुम जटीला के कमरे में जाओगी । दीन कृष्णदास  तुम्हारे पीछे पीछे कब जायेगा ? उसकी बस यही तमन्ना है !

 

 

२२

 

अहा सुवदनी ! कब वह दिन आयेगा ? मैं कब वह मज़ा देख पाऊंगी ? आनन्दित होकर कुन्दलता जटीला से यशोदा की सारी बातें बतायेगी । जटीला सुखी होकर तुम्हें अपनी गोदी में ले लेगी, और तुम्हें चूमेगी ।

 

कपटी श्यामा (जो असली में श्यामसुन्दर हैं),  उदास स्वर में कहेगी – “सुनो सुनो मैया जटीला,  तुमसे  अपनी दुख भरी दास्तां बताती हूं । मैं बरसाने में रहती हूं । तुम्हारी बहू से मिलने आयी हूं । बचपन में हम दोनों एकसाथ खेलतीं थीं, बहुत  मस्ती करतीं थीं । अब तो वह मुझसे बात ही नहीं करती है । ओ हो ! क्युं मैं यहां आ गयी ? मेरा इतना दूर आना व्यर्थ ही हुआ ।“

 

हे धनी, कपटिनी की बातें सुनकर जटीला तुमसे कहेगी – “ बेटी, यह तुम्हारे मायके से आयी है, तुम इससे बात क्युं नहीं करती हो ? यहां आओ – इससे दोस्ती जताओ ।” ऐसा कहकर तुम्हारा हाथ पकड़कर श्यामा सखी के हाथ में देगी ।यह देखकर मेरे साथ सभी सखियां हंसी  छुपाने की कोशिश करेगी । जटीला श्यामा को तुम्हारे पास बिठाकर प्यार से भोजन करायेगी ।

 

फिर तुम अपने कमरी में लौट आओगी और रत्न-आसन पर बैठोगी । कितने रंगों की तरंगें छुटेगी । अब कुन्दलता के साथ श्यामा लौट जायेगी । चम्पकलता का इशारा पाकर मैं तुम्हारा चरण-सम्वाहन करूंगी ।हे ईश्वरी ! कब मेरा ऐसा सौभाग्य होगा ? हे धनी ! कृष्ण्दास पर करुणा किजीये, और अपने दासियों के बीच किंकरी बनाकर रखिये ।

 

२३

 

हे धनी, अपने प्रियतम के विरह से दुःखी होकर तुम प्रासाद के छत पर जा बैठोगी । श्री हरि नटवर वेष धरकर अपने प्रिय सखाओं के साथ गोधन को लेकर वन जाएँगे । नंद बाबा और यशोमती मैय्या का चित्त बडा ही व्याकुल होगा। वे उनसे दुःख के मारे कितने बातें करेंगे ! वे उन्हें बाहों में भरकर चूमेंगे । माता पिता के चरण धरकर श्री हरि विनती करके उन्हें घर लौटाएँगे । हे धनी , खिड़की में से तुम अपने प्रियतम के मधुर चेहरा देखोगी और विरह से तड़प उठोगी । गोविन्द भी तुम्हारी तरफ देखेंगे । हे धनी, गोविन्द इशारे से  कहेंगे, “ मैं तुमसे तुम्हारे कुण्ड के तट पर मिलूँगा । वहाँ तुम जल्दी से आ जाना” । इतना कहकर श्री हरि वन को जाएँगे । ये सुदंर दृश्य कृष्णदास कब देख पाएगा ?

 

 

२४

 

 

राधारानी प्रासाद के उपर से नीचे उतरकर अपने पलंग पर बैठेगी । वे माला और पान का बीड़ा तुलसी के हाथ सौंपेगी । यह है मिलन-संकेत । माला और बीड़ा को लेकर तुलसी बड़े आनंदित होकर जाएगी । यहाँ पर धनी पकवान्न बनाकर बैठी रहेगी । सूर्य पूजा केलिए जितनी सामग्री चाहिए, वह मैं जुगाड़ करूँगी । एक बक्से में तांबूल- बीड़ा भरकर रखूँगी । अगुरु और चंदन घीसकर सोने की कटोरी में रखूँगी । विभिन्न फूलों से माला गूंथकर रखूँगी । सभी पकवानों को थाली में अच्छे से सजाऊँगी और उन्हें ढंकके रखूँगी ।

 

लौटने के बाद तुलसी हंस हंस कर बताएगी कि वह संकेत देकर आई है । मोहन के दिए हुए फूलों की माला तुलसी ललिता के हाथों में देगी । ललिता वह माला लेकर तुम्हारे गले पहनाएगी । माला के स्पर्श से तुम्हारे अंग पर पुलक छा जाएगा, क्योंकि उस माला में श्री कृष्ण का अंग गंध है । उनका अंग गंध ऐसा है जो पूरे युवती समाज को मदहोश करता है । तुम्हारी आर्ति और बढ़ जाएगी । मिलन के लिए तुम्हारा दिल व्याकुल हो जाएगा । कुंदलता जाकर जटिला से सूर्य पूजा की बात करेगी । वह सुखी होकर अनुमति देगी । यह सुनकर कृष्णदास प्रसन्न होकर कहता है ,” बहुत अच्छा हुआ ।“

 

२५

 

 

विचक्षण के मुँह से हमें संदेश मिलेगा कि व्रजराजनंदन अभिसार के लिए निकल पड़े हैं । यह सुनकर हमारे आनंद की सीमा नहीं रहेगा । हम विभिन्न फूलों से सुंदर कर्णपुर हार बनाएँगे । तुम्हें पतले वस्त्र पहनाएँगे और ढेर सारे अलंकारों से विभूषित करेंगे । तुम तो वैसे ही सुंदर हो, लेकिन फिर भी कब मेरा नसीब होगा कि मैं बड़े जतन से तुम्हारा शृंगार करूँगी ?

 

 हे रूप मंजरी ! सखी तुम से बहुत प्रेम करती है । तुम्हारे हाथों में धनी अपना हाथ सौंपेगी । वे चंचल बड़ी बड़ी आँखों से चारों तरफ देखेंगी । एक मत्त हाथी जैसे चलता है , उसी तरह वे वन की तरफ जायेगी । उनका अंग काम-रंग से तरंगित होगा । वे कितनी सुंदर दिखेंगी ! मैं भी पीछे पीछे जाऊँगी ।

 

श्री रूप मंजरी के साथ बहुत सारे दासियाँ होंगी । उन सभी के हाथों में सूर्य पूजा के सामग्री होगी । ब्रज के बाहर आते ही धनी मंगल चिह्न देखेगी और प्रफुल्लित हो जायेगी,  क्योंकि वे समझ जायेंगी कि आज ज़रूर श्याम से मिलना होगा ।  वे सखियों से कहेंगी – “ मैं ने एक सुंदर युवती देखा जिसके हाथ में कलश है ; एक गौ और उसके बच्छड़े को भी एकत्र देखा । रास्ते में एक ब्राह्मण को भी देख रही हूँ । चाष पक्षी, मृगावली, वृष और नकुल  को भी देख रही हूँ । खंजन के जोड़े नाच रहे हैं । नदी के बीच कमल खिला हुआ है और उस पर भौंरा मदमस्त होकर भ्रमण कर रहा है । इस तरह का मंगल चिह्न देखकर सुवदनी को बड़ा आनंद आ रहा है ।

 

वे सखियों की ओर बार बार देखती हैं और एक गजेंद्र के भांति चलने लगती हैं । वे चारों तरफ वन की शोभा निरखती हैं । भौरें , कोयल और कितने तरह के पक्षी गा रहे हैं । सभी प्राणी दीवानों की तरह राधा कृष्ण के यश गान कर रहे हैं । यह देखते हुए हम सूर्य मंदिर के पास पहुँचते हैं। वहाँ पूजा के द्रव्य रखते हैं । राधाराणी तो शुद्ध चित्तवाली है । वे सूर्य की मूर्ति देखकर मन की व्याकुलता उनके चरणों में रखती हैं । हाथ जोड़कर वे सूर्य देव को नमस्कार करती हैं और उनके चरणों में अपनी विनती रखती हैं ।

 

हे ईश्वरी ! अब फूल चूनने के बहाने सभी सखियों के साथ तुम जाओगी । दीन कृष्णदास की यही प्रार्थना है कि मुझे अपने संग ले चलो , प्राणप्यारी !

 

२६

 

वह शुभ दिन और कब आएगा, हे सुवदनी , कि मैं तुम्हारे उस सुंदर दृश्य को देख पाऊँगी । कौन सा दृश्य ? वही कि तुम श्री राधाकुण्ड के तट पर बगीचे में प्रवेश कर रही हो । बाईं तरफ विशाखा है और ललिता सखी तुम्हारी दाईं तरफ है । श्री रूप मंजरी तुम्हारे आगे आगे और रसवती सखी पीछे पीछे चल रही है । श्री मंजुलाली मंजरी और कितनी ही युवतियाँ जा रहीं हैं । मैं भी सबके पीछे पीछे चलूँगी । मेरे हाथ में तांबूल का बक्सा होगा । और मणियों से जड़ा हुआ पंखा होगा। तुम रस-आवेश में हिलडुलकर चल रही होगी । यह देखकर मेरा मन कितना आनंदित होगा । तुम्हारे कमर की किंकिणी और तुम्हारे नूपुर की ध्वनी सुनकर मेरे कानों की तृष्णा शांत होगी । सखियों के हाथ पकड़ कर तुम बातें कर रही होगी । इस तरह से तुम श्री कुण्ड के तट पर जो बगीचा है, उस में प्रवेश करोगी ।

 

श्याम सुंदर तुम्हारे विरह में दुःखी हैं और वे सुबल सखा के पास है ।  रसराज फूलों की शय्या पर सो रहे हैं । तुम्हारा अंग-गंध पवन को मतवारा बना देता है । उस खुश्बू को पाकर श्रीकृष्ण झट से बैठ जाते है। भौंरे की तरह , श्रीकृष्ण उड़कर आ जाएँगे और छल से तुम्हारे अंग को स्पर्श करने जाएँगे । यह देखकर मैं घमंड के साथ कहूँगी , “ हे ढीटों के राजा, क्यों चातुरी कर रहे हो ?  रुक जाओ । मेरे सखी को ज़रा भी स्पर्श मत करना । यह देखकर ललितादि सखियाँ खिल खिल कर हँस पड़ेंगी । तुम्हारा शरीर पुलक से भर जाएगा और तुम दोनों का मिलन होगा । इस आनंद-सिंधु के तरंग में यह अभागा कृष्णदास तुम्हारे साथ मगन हो जाएगा ।

 

२७

 

हाय हाय प्राणेश्वरी, मैं इस शोभा को कब देख पाऊँगी ? तुम बकुल वृक्ष के तले नागर को देखकर हँसकर चली जाओगी । अति मनोरम पुन्नाग फूल को चुनकर अपने हाथों से पुटिका में भर लोगी । उसे चुपके से मेरे हाथों सौंप दोगी । कब मेरा ऐसा नसीब होगा ? यह देखकर नागर शेखर चंचल होकर तुम्हारी आंचल पकड़ लेगा । तुम्हारे कुचों के बीच जो कवच डोल रहा है , उसे तोड़कर कहेगा – आज मैंने चोर को पकड़ा है । तुम्हें अपनी बाहों में भरकर चूमने लगेगा और कहेगा – “सुनो चोरनी , रोज़ रोज़ फूल चोरी करके तुम भाग जाती हो । मैं तुम्हें पकड़ नहीं पाता हूँ । आज मेरा नसीब अच्छा है, इसलिये तुम्हें पकड़ पाया हूँ । चलो तुम्हें कुंज-कारागार में ले चलता हूँ” । तुम्हें अपनी बाहों में भर लेगा और कहेगा – “चलो , मैं आज तुम्हें उचित दण्ड दूँगा” । यह सुनकर ललिता भौं चढ़ाकर तुम्हें अपने पीछे कर लेगी । वह नागर के सामने खड़ी होकर कहेगी – “अच्छा, इतना घमण्ड दिखा रहे हो ! मेरे सामने तुम हो क्या चीज़ ? तुम तो बस पशुओं का एक रखवाला हो । गौ चराने वाला एक चरवाहा हो । जाओ जाओ, जाकर अपने पशुओं की रक्षा करो । बौना होकर चाँद पकड़ने की कोशिश कर रहे हो ! तुम्हारी इतनी औक़ाद ! तुम जानते हो, मैं कौन हूँ ? मैं ललिता हूँ । तुम मेरे सखी के अंग को स्पर्श करने की कोशिश भी मत करना । सूर्य पूजा केलिए हम सब स्नान कर चुकी हैं । इसीलिए तुम अपने इस रंग ढंग को छोड़ दो” ।  हाय ! मैं कब ऐसे वचन सुन पाऊँगी और मेरे दिल को ठंड़क पहूँचेगी ? कृष्णदास कहता है कि यह सुखमय दृश्य देखकर मेरे नयन आनंदित हो गए ।