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गोविन्द का वेश तो देखो ! उनकी बाँईं तरफ फूलों का धनुष है और उसमें पुष्प-बाण भी जड़े हुए हैं । दाँये हाथ में मणिमय पिचकारी पकड़े हुये हैं । अहा !! ऐसे दिख रहे हैं जैसे कि दस-बाण हैं । कामदेव तो पंच-बाण कहलाया जाता है । पर ये वृन्दावन के अप्राकृत नवीन नागर दशबाण दिख रहे हैं । वे पतले सफेद वस्त्र पहने हुए हैं । कमरबंध में बाँसुरी को अच्छे से कसके बाँध लिया है । रेशमी अंगवस्त्र के एक छोड़ में खुशबूदार चूरण बांध लिया है । पिचकारी में खुशबूदार रंगीन जल भरा हुआ है । अब इस रंगीन जल को वे राधारानी पर फेंक रहे हैं और उन्हें अमृत से भिगो रहे हैं ।
श्यामका पिचकारी बड़ा ही आश्चर्यमय है । ज़रा इसकी रसमय कहानी सुनो ! वैसे तो इसका एक ही मुँह है और उससे एक ही धारा निकलती है ; लेकिन निकलने के बाद, वह एक धारा एक सौ धाराएँ बन जाती हैं । वे जल की धारा को आकाश की तरफ फेंकते हैं । आकाश में पहुँचते पहुँचते , वह एक हज़ार धारायें बन जाती हैं । और जब तक वे धारायें धरती पर गिरती हैं, तब तक वे लाखों धाराओं में बदल जाती हैं । जब वही धारायें राधाजी के अंग पर गिरती हैं , तब वे करोड़ों धारायें बनकर गिरती हैं । कन्हैया सभी सखियों को इसी तरह भिगो रहे थे । उनके पास छोटी छोटी शीशियाँ थी जिसमें सुगंधित चूरण थे । और हाँ, ये चूरण काफी किस्म के थे । कान्हा उसे पृथ्वी पर डाल रहे थे । शीशि टूटकर गिरता और उसमें से एक चूरण का गोला निकल जाता । जब वह चूरण गोपियों के अंग पर उड़ता, वह लाखों गुना बढ़ जाता ! सखियाँ ऐसे दिखने लगीं जैसे कि सारे तन पर कुंकुम-बिन्दू लगाई हुई हों, और अब उन बिन्दुओंके बीच किसीने मृगमद-बिंदु लगा दिया । वे गुलाल और रंग लगने की वजह से ऐसी दिख रहीं थीं जैसे सोने की लताओं में फूल खिले हों और फिर उनपर भौरें शोभा दे रहे हों । वे इतनी सुंदर दिख रहीं थीं कि कोई उसकी वर्णना नहीं कर सकता ।
राई अपने हाथों में कुंकुम-जल से भरी हुई पिचकारी लेकर श्री कृष्ण के अंग पर खुशबूदार जल की धारा छोड़ दिया । श्री कृष्ण के अंग भीग गए । वे इस जल से इतने सुंदर दिख रहे थे जैसे कि आस्मान पर कोटि चंद्र छा गये हों । राई मृदु मंद हँसकर उनके पास जितने गन्ध-चूरण से भरी शीशियाँ थी, उन्होंने सबको पृथ्वी पर दे मारा । उनके ढक्कन खुल गए और कृष्ण के काले अंग गंध से भर गए । विभिन्न गंधों के चूरण से धरती भर गई, आकाश भी भर गया । ऊपर से खुशबूदार जल की बारिश होने लगी । आसमान पे इतने रंग छाए हुए थे कि पूरा आसमान एक रंगीन छ्त्री जैसा दिख रहा था । कृष्ण चंद्र और हरिणाक्षी गोपियाँ इस तरह से होली खेल रहीं थीं ।
कृष्ण के अंग पर रंग का पूरा लेप लग गया । प्रेम का झगड़ा शुरू हो गया । कौन जीते कौन हारे ? कौन क्या कह रहा था – यह भी समझ में नहीं आ रहा था । कन्हैया के साथ राई की इतनी मस्ती भरी बातें हो रही थी ! ठीक तभी सखियाँ आकर इतना गंध जल डाला कि श्री कृष्ण का अंग पूरा भीग गया । अब तो सभी सखियाँ मिलकर गोविन्द के अंग को गंध जल से सराबोर कर रही थीं । श्याम सुंदर इतने परेशान हो गए कि इस परेशानी से बचने केलिए वे बल पूर्वक किसी का कुच स्पर्श कर रहे थे तो फिर किसी का मुख चुम्बन कर रहे थे । राई ने उनपर इतना ज्यादा खुश्बूदार चूरण फेंका और बार बार फेकने लगी – इतना कि श्याम सुंदर आपा खो बैठे । उन्होंने राधारानी को कस के पकड़ लिया । अपने हृदय की तरफ खींचकर बाहों में भर लिया । यह देखकर जितनी सखियाँ थीं, सब के सब पेड़ों के पीछे छिप गए और कृष्ण चंद्र की अभिलाषा पूरी हुई । कामदेव का उद्देश्य सफल हुआ । उन्होंने अपना मंत्र बाण छोड़ दिया और श्री कृष्ण अपनी तिरछी निगाहों से सभी प्रियाओं के दिल बिंध लिया । उस बाण से विद्ध होकर जितनी कृष्णप्रिया थीं, सब विवश हो गईं । तब उन्होंने भी श्री कृष्ण मृदु मंद हसकर श्श्यामसुन्दर की तरफ तिरछी नयनों से बाण छोड़े । उन बाणों से श्री हरि व्याकुल हो गए । इस तरह दोनों काम बाण से बिद्ध हो गए । ऐसा लग रहा था कि मानो जलधर, अर्थात मेघ, पृथ्वी पर एक नया शरीर धरकर आया है और वह सौदामिनी अर्थात बिजलियों को खुश्बूदार जल से सींज रहा है । जलधर बिजली के साथ खेल रहा है । खुश्बूदार पानी की वृष्टि कर रहा है । वृन्दा आदि सखिगण इस लीलामृत को पूर्ण कर रही है । कवि यदूनन्दन दास गा रहे हैं , कि इस तरह कनहैयाजी सखियों के साथ विभिन्न लीला करते हैं ।
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होली खेलने के बाद हमारी राई धनी नागर के साथ वृक्ष के नीचे आनन्दित होकर बैठेंगी । मैं दोनों के सुंदर अंग को पोंछकर सूखे वस्त्र पहनाऊँगी । पंखा लेकर हवा करूँगी । सुंदरी वृन्दा दोनों का दिल बखूबी जानती है । इसीलिए उसने एक बड़ा और सुंदर झूला सजाया है । उत्तर की तरफ बकुल की डाली पर सुंदर झुला झूल रहा है । उसपर राई और श्याम झूलेंगे । इसके पहले कदम्ब वृक्ष पर झुला सजाया गया था । और दक्षिण में चंपकलता वृक्ष पर । पश्चिम में कोयल रस भरे गीत गा रहे हैं । वहाँ पर भी रत्नों का हिंडोला सजाया गया है । मेरी सुवदनी अपने प्रियतम के साथ वहाँ झूलेंगी ।
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झूलन लीला की प्रार्थना
अहा विनोदिनी ! तुम मजेदार झुले पर मस्ती से विनोद नागर के साथ झूलोगे । कब मैं इस दृश्य को देखूँगी ? ललिता, विशाखा आदि प्रिय सखीगण विविध वाद्य-यंत्र लेकर आनंद विभोर होकर मीठे स्वर में केदार और मल्हार राग छेड़ेंगी । कोई सखी झुले पर फूलों की वृष्टि करेगी । तुंगविद्या सखी सामने आकर नाचेगी । ललिता के इशारे पर झूले की डोर को मैं अपने हाथ ले लूँगी । दुप्प्ट्टे को कमर में बांधकर मैं धीरे धीरे झूले को झुलाऊँगी ।
हे प्राणेश्वरी, झुलने में झुलते वक्त, तुम्हारे कुण्डल गालों में प्रतिबिम्बित होंगे और पसीने के बूँद तुम्हारे चहरे पर छा जाएँगे । यह देखकर विनोद नागर अपने उत्तरीय से तुम्हारे मुख-मण्डल पोछेंगे । दोनों के गले में माधवी और मालती फूल की विनोद माला लहराएँगी । मधुमक्खियाँ शहद की लालच में गुंजन करते हुए आएँगे । विनोदिनी चमकित हो जाएँगी । उनके हाथों की चूड़ियाँ झंकार कर उठेंगी । कमल जैसे कोमल सुंदर हाथों से मधुमक्खी को रोककर तुम नागर की आंचल में अपना चेहरा छुपाओगी । इस सुंदर दृश्य को देखकर मैं आनंद सागर में डूब जाऊँगी इस कृष्ण दास का ऐसा नसीब कब होगा , हे हेमगौरी ?
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मधुपान लीला दर्शन की प्रार्थना
प्राणेश्वरी प्राणनाथ के हाथ पकड़कर झूले से उतरेकर सखियों के साथ माधवी मंच पर बैठेंगीं । मैं हाथ में पंखा लेकर मंद मंद हवा करूँगी । उनका सब श्रम दूर हो जाएगा । तभी श्री वृन्दा गिलास में मधु भरकर लाएँगी । माधव के संग तुम मधुपान करेगी । तुम्हारे मुख मण्डल की शोभा कितनी मधुर होगी ! तुम खिलखिलाकर हँस पड़ोगी । तुम्हारी आँखें गुलाबी हो जाएँगी । तुम कहोगी – “हाय हाय यह क्या ? आकाश और धरती घु घु घूम रही है और ये पेड़ डरके भाग रहे हैं । ओ ललिता, मैं कितनी डरपोक हूँ – मैं कैसे बचूँगी ? यह कहकर धनी नागर के कंठ में अपनी बाहें डालकर पकड़ लेगी । कृष्ण दास कब इस शोभा को देखकर विभोर होगा ?
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मदन सुखदा नामक कुंज के द्वार पर कितने फूल खिलते हैं ! कितने भ्रमर गुंजन करते हैं ! उस पर सुंदर मालाएँ झूलती हैं । और वह काम-विलास के चित्रों से शोभित हैं । हे शशिमुखी, अर्थात हे चंद्रमुखी राधे, कब मैं तुम्हारे उस कुंज को कोमल मल्लिका पुष्पों से सजाउँगी ? ऐसा करने में मुझे कितना सुख मिलेगा ! अहा प्राणेश्वरी ! तुम्हारी किंकरी श्री रुप मंजरी मेरी तरफ मुस्कुराकर आँख मारकर कहेगी – “शय्या बिछाओ ।“
हे धनी, मैं उस रत्नमंदिर के पलंग पर नील-कमल की पंखुड़ियां बिछा दूँगी । युगल सरकार मधु मद से विभोर होकर पलंग पर जाएँगे । वहाँ पर वे अद्भुत प्रेम केलि की रचना करेंगे । वे प्रेम में मगन हो जाएँगे । हे धनी, रसिक नागर तुम्हारे वक्ष पर नख का आघात करेगा । हे गौरी, तुम भी प्रेम उन्म्मत हो जाओगी । मदन-मस्त होकर तुम नागर को अपने वक्ष पर खींच लोगी और प्रेम विलास करोगी । ऐसा लगेगा जैसे कि नए मेघ पर बिजली खेल रही है । तुम्हारे दोनों के जिह्वा एक दूसरे से युद्ध करेगी । तुम्हारे अंगों से प्रेम श्रम के जल टपकने लगेंगे । मैं नयन भरकर उस शोभा माधुरी का दर्शन करूंगी ।
किशोर-किशोरी श्रम-आलस से पलंग पर बैठेंगे । गुण-मंजरी मेरी तरफ इशारा करेगी तो मैं पंखा करूँगी । चंपक मंजरी सुवासित जल लाकर दोनों के मुँह धुलाएगी । रतिमंजरी पतला कपड़ा लाकर दोनों के मुँह पोंछेगी । दोनों के मुँह मे तांबूल देगी । श्री रूप मंजरी और मंजुलाली मंजरी चंदन-केसर लाकर दोनों के अंग पर अंकन करेगी । अहा विधू मुखी ! मुझे भी सेवामृत देकर सुखी करो ! इस कृष्णदास को जल्दी अपने कोमल चरणों में स्थान दो ।