अहा गान्धर्विके ! व्रजेश्वरी चंदनकला को तुम्हारे पास भेजेगी । वह आकर कहेगी,” जल्दी से गोविंद के लिए शाम का भोजन प्रस्तुत करो । माता ने वटक बनाकर भेज कहा है ।“ उसके सुमधुर बातों को सुनकर, तुम तुरंत पलंग से उठ जाती हो । हे सुंदरी, तुम सखियों के संग रसोई में प्रवेश करती हो । कृष्णदास आशा करता है कि वह भी पीछे पीछे चलेगा।
हाय हाय कृपामयी, कब मेरा ऐसा नसीब होगा कि मैं रसोई घर धोउँगी, चूल्हे में आग जलाऊँगी, कड़ाही धोकर उसपर रखूँगी, पानी, नारियल, घी, केला, शक्कर और आटा लेकर आऊँगी तथा काली मिर्च का चूर्ण बनाकर तुम्हारे हाथों में दूँगी ।
हे धनी, तुम परम हर्ष के साथ चौकी पर बैठोगी । प्रसन्न चित्त होकर, अमृतकेलि आदि मिठाइयाँ बनाओगी । यह देखकर कृष्णदास की आँखें तृप्त हो जाएँगी ।
हे प्राणेश्वरी, तुम पकवान बनाकर आसन पर आकर बैठोगी । मैं आनंद से तुम्हें हवा करूँगी । तुमसे कहूँगी – “सुनो प्राणेश्वरी, आज मैं तुम्हें अपरूप देख रही हूँ । तुम्हारे अंग पर सुशीतल चंदन का जो विलेपन किया था, वह सब धूल गया है । आग के ताप में बटक बनाते वक्त ये सब गल गये हैं ।” मेरी बातें सुनकर, ओ धनी, तुम बड़ी प्यार से मेरे गालों पर उंगली से मारोगी । तुम्हारे हाथों के स्पर्श से मैं आनंद के सागर में डूब जाऊँगी और इस कृष्णदास के अंग पर पुलक छा जाएगा ।
हा हा प्राणेश्वरी ! तुम स्नान वेदी पर जाकर बैठोगी । मैं नये कुमकुम का लेप बड़े प्रेम से तुम्हारे अंग पर लगाऊंगी । सोने की झारी में सुवासित जल भर कर लाऊँगी और तुम्हें उससे स्नान कराऊंगी । फिर धीरे धीरे मैं तुम्हें पोंछूँगी । तुम्हें गुलाबी कपड़े और नीले रंग की कंचुलिका पहनाऊंगी ।
तुम्हारे ललाट पर चंदन और सिंदूर की बिंदी सजाऊंगी । तुम्हारे चिबुक पर कस्तूरी बिंदु रचूंगी । तुम्हारे लाल लाल चरण कमलों को हाथों में पकड़कर अलता लगाऊंगी । तुम्हारा रूप देखकर मैं हर्षित हो जाऊंगी । नैनों से अश्रु झरेंगे और मेरा अंग पुलकित हो जाएगा ।
कब वह दिन आएगा जब गैया और बंसी की धून सुनकर मेरा अंग पुलकित हो जाएगा ?
हे धनी, मैं तुमसे कहूँगी कि तुरंत अटरिया पर चढ़ जाओ । और मैं सुंदर आसन लाकर वहाँ बिछाऊँगी । तुम सहचरियों के संग उस पर बैठोगी । तुम्हारी आँखें प्यासे चातक की तरह श्याम-रूप का अमृत पान करेंगी । श्यामसुंदर का अतुलनीय रूप देखकर तुम्हारा शरीर पुलकित होगा । तुम कदंब फूल की तरह दिखने लगोगी । आनंद सागर में डूब जाओगी । श्याम नागर के नयन भी चकोर की तरह तुम्हारा अमृत पान करेंगे । वे भी विभोर हो जाएँगे । तब सुबल सखा उन्हें घर की तरफ ले जाएगा । तुम दोनों के प्रेम का अद्भुत विकार देखकर, यह दीन कृष्णदास आनंद सागर में डूब जाएगा । कब यह शुभ दिन आएगा ? मेरे मन की अभिलाषा कब पूरी होगी ?
राधा गौरी प्रासाद के छत से उतरकर आसन पर बैठेंगी । उनके साथ सखियाँ होंगी । एक माला और बीड़ा बनाकर तुम तुलसी के हाथ दोगी । आनंद चित्त से उसे कहोगी – ” यह रहा संकेत कुंज का संकेत । ” तुम्हारे इशारे पर सोने की थाली में मैं कर्पूर, अमृतकेलि और बटकावी लाकर रखूँगी । फिर उसे पतले कपड़े से ढँककर खुशी खुशी तुलसी के साथ चल पड़ूँगी । दीन कृष्णदास का ऐसा नसीब कब होगा ?
अहा हेमगौरी ! मैं तुम्हारे इशारे पर तुलसी के साथ जाऊंगी । बटक के थाली को सर पर रखकर नन्दीश्वर के भवन में प्रवेश करूँगी । फिर सर से थाली को धीरे धीरे नीचे उतारकर व्रजेश्वरी के चरण में प्रणाम करूँगी । वे मेरा मुख चूम लेंगी और तुम्हारी कुशलता पूछेगी । मैं बताऊँगी कि सब सुमंगल है । वे बटक देखकर खुश हो जाएगी ; तुम्हारे गुणों का बखान करेंगी । यह सुनकर मेरे कान तृप्त हो जाएँगे, मेरे अंग पर पुलक छा जाएगा । फिर व्रजेश्वरी गोविंद को प्यार से भोजन कराएगी । यह दृश्य मैं अपने नयनों से देखूँगी । काश ! मेरा कब ऐसा नसीब होगा ?
धनिष्ठा चुपके से कृष्ण अधरामृत मेरे हाथों में देगी। कृष्णदास कब यह लेकर तुम्हारे पास आएगा ?
जब मैं नंद-महल से लौटूँगी, तो हे धनी, तुम मुझसे अपने प्राणवल्लभ के भोजन के बारे मे पूछोगी । मैं तुमसे वहाँ पर हुई मस्ती भरी बातों को सुनाऊंगी । सुनते ही तुम्हारा अंग पुलक से भर जाएगा । मैं आसन बिछाकर जल की झारी लाऊंगी । तब तुम सखियों के साथ भोजन के लिए बैठोगी । प्रियतम के अधरामृत पाकर तुम बहुत आनंदित हो जाओगी । तुम्हारे अंग पर पुलक छा जाएगा । आचमन करने के बाद, तुम फिर से आसन पर बैठोगी । तुम्हारे मुख को निहारते हुए मैं तुम्हें तांबूल खिलाऊँगी । कृष्णदास तुम्हारा इशारा पाकर तुम्हारा प्रसाद पाएगा ।
तुम अपने हाथों से बड़े जतन के साथ अनेक तरह के मिष्ठान बनाओगी । हर मिष्ठान की माधुरी का सुस्वाद क्या होगा ? यशोदा मैया के आदेश अनुसार मुझ दासी को अपनी सखियों के साथ तुम नन्दीश्वर भेजोगी । मेरे हाथों में भोजन की थाली होगी । श्री कृष्ण के लिए हम सब यह अन्न व्यंजन लेकर जाएँगे । नंदराणी हमें देखकर आनंदित हो जाएगी । हम सब का माथा चूम लेगी । फिर प्रेम से विभोर होकर तुम्हारी कुशलता पूछेगी ।
धनिष्ठा परम प्रेम से श्यामसुंदर के मुख कमल का उच्छिष्ट लाकर देगी । हम तुम्हारे लिए वह प्रसाद लाकर तुम्हारे सामने धरेंगीं । इस दासी की यह अभिलाषा तुम कब पूरा करोगी ?
इस समय गुण्मालिका वहाँ पर आएगी । तुम दोनों एक दूसरे को बाहों में भर लोगी । धनिष्ठा चुपके से उसके हाथों कृष्ण अधरामृत भेजेगी । अमृत-सार और बहुत तरह के रसीले अन्न होंगे । इनमें कृष्ण प्रसाद मिलाने के बाद ये संपूर्ण हो जाएँगे । मैं तुम्हें ललिता आदि सखियों के साथ बिठाकर बड़े आनंद से भोजन कराऊंगी । हे कुमकुमांगी, मेरा ऐसा नसीब कब होगा ?
गुलाब के फूल और कर्पूर के सुगंध वाले जल को तुम्हारे पान के लिए रखूँगी । फिर तुम्हारे होठों में तांबूल दूँगी । हे सुन्दर नयनों वाली राधे ! उचित वक़्त पर तुम्हारे हाथों में दन्तकाष्ठ और आचमन के लिये जल दूंगी । सुगन्धि धूप जलाऊँगी और जतन से पंखा करूंगी । कर्पूर और गुलकन्द डालकर पान बीड़ा बनाऊंगी । कब ऐसा खुश्बूदार ताम्बूल तुम्हारे मूंह में डालूंगी ? अहा !! ऐसी सेवा पाकर मैं प्रफुल्लित हो जाऊंगी और मेरे अंग पर पुलक छा जायेंगे ।
अब तुम सहचरियों के साथ रत्न-सिंहासन पर बैठोगी । श्री ललिता देवी आनन्द के साथ तुम्हारी आरति उतारेगी । अन्य सभी सखियां तुम्हारा मंगल-गान गायेंगी और तुम्हारी आरति उतारेंगी । मैं अपने केश से तुम्हारा निर्मञ्छन करूंगी । ललिता आदि सखियों के साथ हास-परिहास में हमारा वक़्त बीतेगा ।