विशाखा कुंड के इशान कोने में मंजुलाली का कुंड है । हे धनी, वहाँ तुम नागर के साथ छुप्पा छुप्पी खेलोगी । हे प्राणेश्वरी, मैं कब देखूँगी कि ललिता अपने ललित हाथों से नागर का मुख ढँक देगी ? तुम सखियों के साथ केसर कुंज में जाकर छुप जाओगी । नागर तुम्हें यहाँ वहाँ ढूँढ़ता फिरेगा । मैं उनसे कहूँगी – “जाओ नागर, विधुमुखि केसर कुंज में छुपी हुईं हैं । पर वे मेरी बातों पर विश्वास नहीं करेंगे और वहां जाने की बजाय बकुल कुंज में जाएँगे । यह देखकर मैं हँस पड़ूँगी और ज़ोर ज़ोर से तालियाँ बजाऊंगी । हाय, ऐसा शुभ दिन कब आएगा ? मुझे हँसती हुई देखकर, ललिता प्यारी भी ज़ोर ज़ोर से हँसेगी । तब वह चोरों का मुकुट मणि तमाल कुंज में जाकर छुप जाएगा । हे सुमुखी, तुम संगिनियों के साथ उसे ढूँढ़ती फिरोगी । मैं तुमसे कहूँगी – “सुनो प्राणेश्वरी , हरि इस कुंज में हैं ।“ तुम मेरी बातों पर विश्वास करोगी और वहाँ जाकर उसे पकड़ लोगी । आनंदित होकर तुम अपने गले से मोतियों की माला खोलकर मेरे गले में पहनाओगी । दीन कृष्णदास की यही प्रार्थना है, “हे प्राणेश्वरी, इस तमन्ना को पूरी करो ।“