श्रीवास प्रांगन में मेरे गौरकिशोर प्रेम में मगन होकर नाचेंगे, और राधा भाव में विभोर हो जाएँगे । दोनों प्रभु – नित्यानंद और अद्वैत – उनके दोनों तरफ नाच रहे होंगे ।
प्यारे भक्त गण बड़े आनंद के साथ गायेंगे । प्रभु के वक्ष पर सुंदर मालती की माला झलमल करेगी । और सभी भक्तों के नयनों से जलधारा बहेगी । उनके शरीर कम्प और पुलक से भरे होंगे और उनके अंग अंग में प्रेम का विकार दिखाई देगा । बड़े जोर शोर से परम रसीले कीर्तन की आवाज़ आकाश वातास को मदहोश करेगी ।
उत्तम वैष्णवों के साथ खड़े रहकर कब हम इस सुंदर दृश्य को देखेंगे और अपने प्यासे दिल को शांत करेंगे? जब कीर्तन का समापन होगा, तब मैं पंखे से प्रभु को हवा करूँगा । दीन कृष्ण्दास की यही अभिलाषा है ।
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