पाँसा खेल के लिए प्रार्थना

 

चित्रा के विचित्र कुंज में एक चित्र-मणिवेदी है । उस पर मैं चित्रासन बिछाऊँगी । नागर चतुर हैं, तो राधारानी भी चतुरा हैं । दोनों प्रसन्न होकर वहाँ बैठेंगे । उनके चारों तरफ़ सूचतुरी पंछियाँ होंगी । वृंदा देवी पासें लाकर देगी । पासों पर सुंदर चित्र अंकित होंगे । दोनों मुस्कुराकर खेलने लगेंगे ।

 

राधारानी अपनी हिरनी को बाज़ी रखेगी, जब कि श्याम सुंदर अपने मुरली को बाज़ी रखेगा । कृष्ण जैसे ही पासा चलाने लगेंगे, तब हे मृगनयनी , तुम अपने नेत्रों से उस पर कटाक्ष दृष्टि डालोगी । तब वह ललिता से कहेगा – “सुनो सखी, तुम्हारी सखी बेईमानी कर रही है । वह आँखों के कोने से हँसकर मेरी तरफ देख रही है और देखो देखो, नासा को कैसी फुलाई हुई है !!” ललिता पूछेगी – “तो इस में बेईमानी की क्या बात हो गयी ? सखी का नयन तो वैसे ही चंचल है ।“ कहते ही ललिता मेरी तरफ इशारा करती है । मैं समझ जाती हूँ और मौका पाकर श्याम के कमर से मुरली को चुराकर तुंगविद्या के हाथों में दे देती हूँ । इस आनंद मे मैं मुस्कुराती रहती हूँ । अब हरि इस खेल में हार जाते हैं । राधा गौरी उनसे मुरली मांगती है । श्यामसुंदर को मुरली नहीं मिलती । तब वे कहते हैं – “अरे, तुम लोंगों ने तो मेरी मुरली को चुरा लिया है ! कभी की ये चोरी ? ललिता भौं सिकुड़कर कहती हैं – “सुनो श्याम ! तुम बाज़ी हार गये हो । इसलिए तुम अभी मुरली दे दो ।“ इन्दुमुखी कहेगी – “सुनो ललिता सखी, जब तक वे मुरली नहीं देते, इस ब्राह्मण को पकड़ कर रखो ।  यह सुनकर विदूषक मधुमंगल भागने लगता है । वह ललकारता है – “किसमें इतनी हिम्मत है जो मुझे पकड़े ?!!”  यह सुनते ही सब सखियाँ उस पर टूट पड़ती हैं । उसे पकड़कर बहुत सताना शुरू करती हैं । हे धनी मौका पाकर श्याम सुंदर तुम्हें पकड़कर तुम्हारे मुख कमल को चूमने लगते हैं । अब हे सुंदरी गौरी , तुम अपने प्राणवल्लभ के साथ वेदी पर जा बैठती हो । तुम्हारी मुस्कुराहट इतनी सुंदर है कि लगता है राशि राशि अमृत झलक रहा है । कब मैं इस सुंदर दृश्य को देख पाऊँगी ? मेरा अंग पुलकित हो जाएगा । मैं तांबूल बीड़ा लेकर दोनों के मुख में दूँगी । पंखा लेकर हवा करूँगी । कृष्णदास के जीवन में ऐसा दिन कब आएगा ?