वृन्दावन – १०

 

 

२८

 

सब सखियाँ मस्ती में आ जायेंगीं । उनमें कुटिलता का रस तो है ही । फूल चुनने के बहाने वे प्राणनाथ के संग खिलवाड़ करेंगे । झूठ मूठ झगड़ा करेंगे । तुम भी कपट क्रोध में आकर मुझे आनंदित करोगी । माधव को काम-केलि में मत्त होते देखकर तुम भी महामत्त हो जाओगी । कमल फूल हाथ में लेकर, उन्हें मारने लगोगी । हे सुमुखी , मैं यह देखकर छुप छुप कर हसूँगी ।

 

२९

 

हाय हाय विधुमुखी ! कब मुझे वह दिन नसीब होगा जब मैं कौतुकमय दृश्य देख पाऊँगी ? लाख लाख भौंरें तुम्हारे मुखमंडल को कमल फूल जानकर घेरने लगेंगे । डर के मारे तुम दौड़कर नागर को पकड़ोगी । नागर तुम्हें अपने बाहों में उठा लेगा । तुम्हारे अंग पुलक से भर जाएगा और तुम्हारे मुख को चूम लेगा । और तुम से कितनी विनती मांगेगा । यह सुनकर ललिता-प्यारी डाँटकर कहेगी , “ सुनो सुनो, ऐ शिशुपाल, सखियों के बीच तुम ये क्या कर रहे हो ? छोड़ो छोड़ो मेरी सखी को, मैं तुम्हारी सब चातुरी जानती हूँ । तुम्हारी भाभी है ना , कुंदलता, जाओ जाके उसे आलिंगन करो । और अपने मन की आशा पूरी करो”। नागर तब उसे कहेगा,” तेरी सखी क्यों आकर मुझे बलपूर्वक जकड़ लिया ? ” यह कहते हुए नागर मोहित हो जायेंगे । उनकी मुरली गिर जायेगी । हे गौरी ! तुम तो सुचतुरी हो ! उस मुरली को उठाकर इशारे से मुझे बुलाओगी । मुझे वंशी सौंप दोगी और मैं उसे बड़े जतन से छुपा लूँगी ।

 

नागर चंचल होकर किसी के मुँह चूमेंगे, किसी के कुच को स्पर्श करेंगे । तब चित्रा कहेगी,” सुनो नागर मणि, जाओ जाकर बंसी के मुख पर चुंबन करो “। यह सुनकर नागर राज सब सखियों के बीच खड़ा हो कर स्तब्ध हो जायेंगे । उन्हें इतना दुःख होग जैसे कि अपना प्रिय मित्र से बिछ्ड़ गये हों । तब माधव कहेंगे, “ तुम सब चोरनी हो । मेरे मुरली को तुम सब ने मिलकर चुरा लिया है। हँस कर ललिता कहेगी – “वह तो एक सूखे बास का टृकड़ा है । उसे लेकर हम क्या करेंगी ?”  तब कुंदलता नागर को अपनी आँखों के इशारे से बता देगी कि बंसी तुम्हारे पास है । वह आकर तुम्हें अपनी बाहों में भर लेगा “बंसी दो…… दो…. दो,” कहकर वह गद गद हो जाएगा और तुम्हारे मुख कमल को चूम लेगा । हे धनी, तुम ललिता के पास मुरली दे दोगी । तुम्हें छोड़कर वंशीधर अब ललिता को पकड़ लेगा । वह कहेगा – “दे दो मुझे वंशी ।“  सब सखियाँ उसे घेर लेंगी । बहुत शोर मचेगा । तुम तब कुंज में जाकर छुप जाओगी । मैं चुपके से वंशी को लाकर वृन्दा के हाथों दे दूँगी । हाय, कब मेरा ऐसा नसीब होगा ? वृन्दा के इशारे पर नागर आनंदित हो जाएँगे और कुंज में प्रवेश करेंगे । अहा वृन्दावनेश्वरी ! दासियों के बीच में दासी बनाकर इस दीन हीन कृष्णदास को तुम कब रखोगी ?

 

३०

 

अनंगाम्बुज कुंज मणियों से जड़ा हुआ एक बड़ा ही सुंदर घर है । उसमें एक पलंग है जिस पर नीले और सुवर्ण मणि जड़े हुए हैं । उस पलंग पर सुंदर फूलों की शैय्या है । हे प्राणेश्वरी , रसिक नागर तुम्हें बाहों में भरकर उस पलंग पर ले जाएँगे । वे अपने नख से तुम्हारे कुच कुंभ पे निशान करेंगे, तुम्हारे श्री मुख को चूमेंगे । हे गौरी, तुम सुरत आवेश में सितकार करोगी । किंकिणी, कंगन और नूपुर की मधुर झंकार सुनाई देगी । कब मैं प्रिय सहचरियों के साथ इसे देखूँगी और सुनूँगी ? सुरत केलि के अंत में तुम दोनों उठकर बैठोगे और तुम्हारे अंग पसीने से लथपथ होंगे । मैं श्री गुण मंजरी के इशारे पर बड़े आनंद के साथ वीजन करूँगी । कब मेरा ऐसा नसीब होगा ?

 

चंपक मंजरी सुवासित जल लाकर दोनों का मुख धुलाएगी । श्री रूप मंजरी तांबूल बीड़ा लाकर दोनों के मुख में देगी । सोने का आइना पकड़कर कब ये दीन कृष्णदास तुम दोनों के सामने खड़ा रहेगा ? हे राधे, तुम कब मेरी यह अभिलाषा पूरी करोगी ?

 

३१

 

रति युद्ध के बाद किशोर-किशोरी पलंग पर बैठेंगे । श्री रूप मंजरी तुम दोनों के विगलित वेशभूषा को ठीक करेंगी । उसके इशारे पर मैं चंदन, सिंदूर, कर्पूर, काजल , केसर और कस्तूरी लाऊँगी । मालती फूलों की माला बनाकर दोनों के सामने लाऊँगी । मेरे अंग पुलकित होंगे । अहा प्राणेश्वरी ! ऐसी सेवा देकर मुझे अपने चरणों तले रखना । दीन कृष्णदास की हमेशा यही अभिलाषा है ।

 

३२

 

मदनसुखदा नाम के कुंज की शोभा अनुपम है । उसमें रत्न सिंहासन है । अभी इस सिंहासन पर युगल-सरकार बैठे हुए हैं । सखियाँ चारों तरफ से उन्हें घेरे हुए हैं । किशोर और किशोरी रसावेश में हैं । मैं उसी सिंहासन की बांई तरफ गुण मंजरी के पीछे सावधान होकर खड़ी रहूँगी । एक मंजरी है, जिसका नाम है मालती मंजरी । वह रूप और गुण में अनुपम है । वह मुझे अपने पास बुलाएगी । मैं उसके पास जाकर दोनों का रूप देखूँगी और मेरे आँखों से प्रेम-धारा बहेगी । मैं चातक की तरह युगल-सरकार का दर्शन-अमृत पान करूँगी और विभोर हो जाऊँगी । श्री रूप मंजरी खुशी खुशी उनके मुँह में तांबूल अर्पण करेगी और राई-कानू उस तांबूल को खाएँगे । जब उनको थूकना होगा, तब वे मुझे बुलाएँगे और कहेंगे – “थूकदान लेकर आओ”। सखी के इशारे पर मैं थूकदान लेकर आऊँगी और उनके मुख चंद्र के पास पकड़ूँगी । वे उसमें थूकेंगे । मैं उसे लेकर दीवार के पास हर्षित होकर खड़ी हो जाऊँगी ।

 

उस कुंज में कितने कौतुकमय बातें होंगी । मैं खड़ी खड़ी सुनूँगी । मेरे मन की आशा पूरी होगी । हाय ! कब मेरा ऐसा नसीब होगा ? सभी वैष्णवों की चरणों में मेरी यही प्रार्थना है ।

 

३३

 

विलास के अंत में हे धनी, तुम्हारे अंग की सुषमा देखने लायक होगी । वह देखकर श्यामसुंदर खुशी अपने आप को भूल जाएँगे । वे इच्छा प्रकट करेंगे कि तुम्हारे हर अंग की वर्णना सुनना चाहते हैं । वे आँखों के इशारे से सखियों से तुम्हारे अंग की वर्णन करने के लिए कहेंगे । श्रीकृष्ण की इच्छा जानकर सखियाँ अपने अपने कवित्व दिखाएँगे । तुम चेहरा नीचा करके सुनती रहोगी । सखियों को पता है कि तुम शर्मा रही हो । फिर भी वे श्री कृष्ण को सुख देने के लिए हर्षित होकर अपना बखान ज़ारी रखेंगी । आखिर में ललिता कहेगी – “ मेरी बात सुनो । राई के रूप गुण की महिमा कौन बखान कर सकता है भला ? कृष्ण, तुम तो जगत-मोहन हो । लेकिन तुम भी विभोर हो जाते हो । फिर श्री गुण मंजरी कैसे वर्णना करेगी ?”

 

 

३४

 

 

हे राधे , तुम्हारे अंग की शोभा इतनी मनोरम है कि वह नवीन गोरोचना को भी हरा देती है । और ऊपर से तुम्हारा भाव-अलंकार भूषण बनकर तुम्हारे अंग की शोभा को और बढ़ा देती है । तुम्हारे गुण और सौन्दर्य ऐसे हैं कि श्याम सुंदर का भी मन और नेत्र मदमत्त हो जाते हैं । और वे पूरे विश्व को तुम्हारे चरणों में न्यौछावर कर देते हैं । राधारानी के चरण कमल तो सुखदाता कमलों के समान है । फिर उनपे अलता लगाने की क्या ज़रूरत है ? उनके चरण-कमल ऐसे हैं, जैसे गुलाबी रंग के अशोक कलि, और उसपे श्री कृष्ण के अनुराग मिला हुआ है । वह अपनी शोभा तुम पर समर्पण किया हुआ है । अर्थात, श्रीमती राधाराणी के कमल चरण इतने सुंदर है कि ऐसा लगता है जैसे उनको गुलाबी रंग के अशोक फूल की कलियाँ अपना सौन्दर्य समर्पण कर चुकी हैं । ऊपर से श्री कृष्ण ने भी अपना अनुराग उनपर अर्पण कर चुके हैं । ये दोनों मिलकर श्रीमती के चरणों का सौन्दर्य बढ़ा रहे हैं । राधाराणी के चरणों में ये सुंदर चिह्न है – शंख, जौ, आधा चंद्र, अस्त्र, हाथी, रथांकुशी, ध्वज, मच्छ्ली, स्वस्तिक और धनुष । ऐसे सुंदर चिह्नों से उनके चरण तल की शोभा और बढ़ जाती है ।

 

उनकी चरणों की उंगलियाँ चंद्रावली जैसे दिखती है अर्थात, चांद की कला जैसी दिखती है । राई की जाँघें किसी घर में मणि-जड़ित सुंदर स्त्म्भ की भांति दिखते हैं, जो श्रीकृष्ण के चित्त को बहुत ही दीवाना बना देता है । उन्हें देखकर श्रीकृष्ण का काम भाव जागृत होता है । ऐसा लगता है कि विधी ने राधारानी को उसी ताप के निवारण करने केलिए बनाया है ।

 

राधारानी के नितम्ब मंण्डल जमुना के तीर जैसे लगते है । जिसपर श्रीकृष्ण का मन शुद्ध राजहंस जैसा विचरण करता है । उनका उदर अश्वथ पत्ते की तरह दिखता है जिसमें उनकी नाभी एक अमृतमय सरोवर जैसी लगती है । ऐसे सरोवर में श्री कृष्ण सुख से विहार करते हैं । उनकी भुजाएँ कमल फूल के सुंदर नाल के समान है । उनके हाथ कमल फूल के समान है । उनके हाथों पर सौभाग्य चिह्न शोभित है । व्यजन , अंभोज, भौंरा, छ्त्र, युप, कुंडलांक, शंख, लक्षमी, आसन, वृक्ष, पुष्पलता, माला, स्वस्तिक, चामर, चंद्रकला ।

 

उनके वक्षोज की शोभा क्या बताऊँ ? उनकी आभा ऐसी कि श्रीकृष्ण का चित्त हमेशा विभोर हो जाता है ।

 

राई के कण्ठ में तीन रेखाएँ है । ये तीन रेखाएँ सौन्दर्य, काव्य और संगीत के चिह्न है । विधि ने कितना सुंदर कण्ठ बनाया है । राई का कण्ठ शंख जैसा है । उसकी शोभा देखने से , शंख लाज के मारे समुन्दर के पानी में प्रवेश कर जाता है । उस कण्ठ की तुलना मैं किससे करूँ ? उस कंठ की आवाज़ सुनकर कोयल शर्मा जाता है । और वह आवाज़ श्रीकृष्ण के कानों की तृष्णा बढ़ा देती है ।

 

राई के गाल इतने चिकने है कि लगता है कि जैसे वे मणियों से जड़ित कोई आइना है जिसमें श्रीकृष्ण अपने मुख की शोभा देखते हैं । राई के दांत मोतियों जैसे हैं । और उनके होंठ बांधुली फूलको भी हरा देते हैं । उनका प्रत्येक अंग अमृत की गंगा है । श्रीकृष्ण एक मदहोश गजराज के भांति उसमें विहार करते हैं, और अपने आप को धन्य मानते हैं । राई की आँखें मृगशिशु की आँखों को भी हरा देती हैं । और वे एक चंचल खंजन पक्षी की तरह यहाँ वहाँ ताकती रहती हैं । ऐसा लगता है  जैसे काजल ने उन्हें बाँधकर रखा है । राई के मांग पर जो सिंदूर है वह कितना शोभायमान है ! उनके केश की वक्र गति ऐसी कि श्रीकृष्ण उनमें रम जाते हैं। श्री कृष्ण की वांछा पूर्ती की मूरत हैं श्री राधा ।