वृन्दावन – ११

 

३५

 

इसके बाद वृन्दा तुम दोनों के चरणों में सकरुण निवेदन करेगी । वृन्दा कहेगी, “ छः ऋतुओं ने मुझे भेजा है । हे प्राणेश्वरी, तुम ध्यान से सुनो । उन्होंने विनती की है कि राधा-कृष्ण सखियों के साथ आकर हमें देखें, तब जाकर हमारी शोभा सफल होगी ।” यह सुनकर धनी गिरिधारी का हाथ पकड़कर सखियों के साथ कुंज से बाहर आएगी ।

 

३६

 

हमारी ये रंगिनी सखियाँ उन्हें चारों तरफ से घेर लेंगी । तुम वन-उपवन में उल्लास के साथ विहार करोगी । तुम दोनों पर हम चँवर ढुलाएँगे । वृन्दा आगे आगे चलेगी । हवा मे दुपट्टे उड़ेंगे । तुम्हारे कंठ में गजमोती की हार लहराएगी । सबकी नूपुर और किंकिणी की रसमय ध्वनी से वन मुखरित हो जाएगा । परिश्रम की वजह से तुम दोनों के चहरे पर पसीने की बूँदे होंगी । ऐसा लगेगा जैसे चाँद पर मोतियाँ बिखर गई हों । इस सुंदर दृश्य को देखकर मेरा उल्लास और बढ़ जाएगा । हमेशा हमेशा के लिए सभी दुःखों का नाश हो जाएगा ।

 

तुम दोनों को देखकर मोर मस्ती से नाचेंगे  और कोयल पंचम स्वर में गाएगा । रह रहकर तुम दोनों पेड़ों के नीचे रुक जाओगे । कितने ही हास परिहास होगा । सखियों के साथ कितनी मस्ती भरी बातें होंगी । सुंदर पेड़ के नीचे वेदी पर श्याम-गौरी बैठेंगे । सखियाँ चारों तरफ घेरकर बैठेंगी । मैं विविध फूलों का हार गूँथूँगी और दोनों के गले पहनाऊँगी । प्रेम से विभोर हो जाऊँगी । दीन कृष्ण दास की यही अभिलाषा है कि “हे युगल किशोर मेरी यह आशा पूरी करें । “

 

 

३७

 

 

श्री कुण्ड के तट पर सोने की वेदी है । उस पर किशोर-किशोरी सखियों के संग बैठेंगे । बगीचे में भ्रमण करने से दोनों के अंग पर पसीना छाएगा । मैं बड़े आनंद के साथ मंद मंद हवा करूँगी । प्यारी मंजुलाली मुझे अपनी जानकर इशारे से कहेगी , “जल की झारी लाओ” । मैं जल से दोनों का चेहरा धुलाकर पोंछ दूँगी । दोनों के मुँह में तांबूल और कर्पूर दूँगी । तुम दोनों के उस लाल चरणों को पकड़कर सेवा करूँगी । हाय , कृष्णदास का ऐसा नसीब कब होगा?

 

३८

 

सरोवर तट की शोभा परम सुंदर है । यहाँ कितने फूल खिले हुए हैं । भ्रमर के गुंजन से मुखरित है । नागर कुंजों में से तरह तरह के फूल चूनकर लाएँगे और अपने हाथों से तुम्हें सजाएँगे । यह दृश्य देखकर मैं सुख के सागर में ड़ूब जाऊँगी । कब मेरा ऐसा नसीब होगा ? मैं कब तुम्हें नागर की बाँई तरफ देखूँगी ? सब सखियाँ बड़े आनंद के साथ फूल चूनकर लाएँगी और नागर के हाथों में देंगी । उन सखियों के चेहरे प्रफुल्लित होंगे । कोई कोई ऐसे फूल चूनकर लाएँगी जो कम खिले हुए हैं । वे उन फूलों को लाकर कृष्ण के गले में डालेंगी । कोई तो नया नया मोर पंख लाकर देगी । और श्रीकृष्ण उससे वेष बनाएँगे । तुम्हारे अंग प्रफुल्लित हो जाएँगे । श्री कृष्ण की रुचि देखकर तुम आनंदित हो जाओगी । श्री कृष्ण ऐसे केश-पाश बनाएँगे जैसे कि उनमें प्रेम की तरंगें खिल रहीं हैं । हे स्वामिनी, तुम्हारे उस केशपाश को देखकर कब मेरी आँखें अति आनंदित हो जाएँगी ?