४८
अहा श्याम गौरी ! मैं धीरे धीरे बड़े जतन से तुम्हारे अंगों का भूषण खोलूँगी । दोनों को पतले वस्त्र पहनाऊँगी, ताकि तुम जलकेलि के लिए जा सको । कब वह शुभघड़ी आयेगी जब कृष्णदास तेल और आँवला लेकर सखियों के पीछे पीछे जाएगा ? यही उसकी एक मात्र अभिलाषा है ।
४९
कुंड की शोभा कितनी मधुर है ! वह सुन्दरता राई और कानू के दिल को लुभाती है । उसके चारों तरफ चार घाट शोभायमान हैं । ये घाट विभिन्न मणि और रत्नों की छटा से आलोकित है । उनकी सीडियाँ स्फटिक मणि से बनी हुईं हैं तथा अन्य रंग-बिरंगे मणियों से जड़ी हुई हैं । हर घाट के दोनों तरफ मणि की छोटी छोटी वेदियाँ हैं । चारों तरफ सुंदर वृक्ष हैं । हर वृक्ष के नीचे दो रत्नवेदी सजाए हुए हैं । कुंड के दक्षिण की ओर चंपक पेड़ है; उसके सामने रत्न और मणि से जडित हिंडोला है । पूर्व की दिशा में कदंब के पेड़ पर झूला झूल रहा है । उसमें भी अनेक मणि और रत्न जड़े हुए हैं । पेड़ फूलों का वर्षण कर रहे हैं । पश्चिम मे रसाला वृक्ष है । उस पर भी सुंदर हिंडोला है । उत्तर की दिशा में बकुल पेड़ पर रत्न जडित हिंडोला झूल रहा है । आठों ओर आठ कुंज है । अष्ट सखी के नाम से ये कुंज प्रसिद्ध है । ये कुंज राई और कानू को बहुत ही लुभावनी लगते हैं । उत्तर की दिशा में ललिता सखी, ईशान में विशाखा सखी, पूर्व में चित्रा, अग्नि में इंदुलेखा, दक्षिण में चम्पकलता , नैॠत में रंगदेवी , पश्चिम में तुंगविद्या, और वायुकोण में सुदेवी के कुंज है ।
जल में चार रंग के कमल खिलते हैं, जो भौरों को लुभाते हैं । कुमु्द और कल्हार की शोभा तो देखते बनती है । कुंड में कितने ही सुंदर और रंग-बिरंगी पक्षी घूमते हैं जैसे, हंस, सारस, डाहूक, चक्रवाक आदि । ये सभी सुंदर और मधुर आवाज़ से कन्हैया के दिल को हर लेते हैं । चारों तरफ भौरों का उन्मत्त गुंजन सुनाई देता है । कुंड में कमल वन खिला हुआ है । । राधारानी सखियों को लेकर प्राणवल्लभ के साथ इस मधुर सरोवर में विहार करती हैं । सुनो शशिमुखी, कब तुम अपने प्रियतम के संग नई नई सुमधुर केलियों मे रंग जाओगी ? और मैं इस दृश्य को कब देख पाऊँगी?
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जलकेलि
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श्री कुंड के खुश्बूदार शीतल जल में राजहंस खेल रहे हैं । वह देखिए, भौरें कमलों पे मदहोश होकर गीत गा रहे हैं । हे राधे, तुम नागर के साथ सखियों को लेकर आनंदित होकर मस्ती के साथ जल में उतरोगी । सभी सहचरियों को लेकर तुम मंडली बनाओगी । सबके हाथों में पिचकारी होगी । हे सुंदरी गौरी, तुम सब जल भर कर श्याम के मुख को ताककर उन पर जल का बौछार करोगी । नागर हार जाएगा । वह जल में डूबेगा और तुम्हारे चरणों को जल के नीचे से पकड़ लेगा । फिर कंठ तक जल में उठेगा और तुम्हें गोदी में भर लेगा । फिर वह तुम्हारे मुख को चुंबन करेगा । तुम गुस्से से हँसोगी । तब तुम्हारे चंद्रमुख की शोभा कितनी प्यारी होगी !
फिर तुम रोती हुई आवाज़ में उससे विनती करोगी । वह तुम्हें नाभी तक जल में उतार देगा । वह तो रसिक मुकुट मणि है । जब तुम्हें उतार देगा, तुम्हारे लाल लाल होंठ फीके पड़ जाएँगे । मैं सखियों के साथ तीर पर खड़ी होगी । आनंदित होकर कब मैं यह दृश्य देख पाऊँगी ? तुम दोनों जल में कितनी मस्ती करोगी !!
जलकेलि करके तुम तीर पर आओगी । मैं तुम दोनों का उबटन करूँगी । केशों का मार्जन करूँगी और जल में स्नान कराऊँगी । फिर तुम दोनों को सूखे कपड़े पहनाकर निकुंज मंदिर में ले जाऊँगी । यहाँ पर रूप मंजरी, रति मंजरी और बाकी सभी युवतियाँ जल्दी से जल में उतरेंगी । वे अपने अंगों का मार्जन करेंगी और फिर तीर पर उठकर बैठ जाएँगी । मैं सभी को वसन भूषण पहनाऊँगी और उनके पीछे पीछे जाऊँगी । फिर तुम्हारे पास लौट आऊँगी । यह दीन हीन कृष्णदास कब सखियों के साथ तुम्हारा सेवा कर पाएगा ? हाय !! यही उसकी एक मात्र अभिलाषा है !
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वेष भूषा सेवा के लिए प्रार्थना
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मदन सुखदा कुंज बड़ा ही मनोहर है । अहा हेम-गौरी ! तुम रसिक मुरारी के साथ इस कुंज के रात्नवेदी पर आनंद से विभोर होकर बैठोगी । वह दिन कब आएगा जब मैं इस दृश्य को देख पाऊँगी ?
तुम्हे नील वस्त्र पहनाऊंगी । तुम्हारे प्राण वल्लभ को पीताम्बर पहनाऊंगी । तुम्हारे केश में वेणी की रचना करूंगी । कन्हैया के केश में चूड़ा बाँधूंगी । मैं तुम्हें नवीन गोरोचना, चंदन, कस्तूरी और सिंदूर से सजाऊंगी । आँखों में काजल लगाऊंगी । और तुम्हारे आइने जैसी गालों पर चित्र अंकित करूँगी । तुम्हारी तिलफूल जैसी नाक पर मोती का बेसर और कानों में गोल गोल कुंडल पहनाऊंगी । चिबुक पर काले रंग का बिंदू बनाऊंगी और दोनों की बाहों में कंगन पहनाऊंगी । हाथों में चूड़ियाँ पहनाऊँगी । हाथों की उंगलियोंमें सोन की अंगूठियाँ पहनाऊँगी । तुम्हारे गले में रत्नहार, मोतियों का हार और फूलों की माला डालूंगी । रत्नों से जड़ी हुई मेखला पहनाऊंगी । तुम्हारी कमर पर किंकिनी बाँधूंगी और चरणों को नूपूर से सजाऊंगी । दोनों के कर कमलों में नील रंग और सुनहरे रंग का कमल दूँगी । यह सेवा करके कितना आनंद होगा मुझे ! दोनों के सामने मणि से निर्मित आईना पकड़ूंगी । दोनों का रूप देखकर इस कृष्णदास की आँखों से अश्रु झड़ेंगे ।
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सुबल, और वह विदूषक मधुमंगल, दोनों जल्दी से आकर कहेंगे – “सुनो गांधार्विके, हम भूख के मारे मर रहे हैं । हमसे भूख और सहा नहीं जाता । उन दोनों के चेहरे देखकर तुम मुस्कुराओगी और मेरी तरफ देखोगी । तुम्हारा इशारा पाकर मैं झट से रत्नमंदिर में जाऊंगी । कब मेरी ज़िन्दगी में ऐसा शुभ दिन आयेगा ?
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भोजन लीला के लिए प्रार्थना
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अहा विधूमुखि ! कब वह दिन आएगा, जब मैं रत्नमंदिर में जाकर सुंदर आसन बिछाऊँगी ? नागर उस आसन पर जाकर बैठेंगे । मैं पास ही जल की झारी रखूँगी । तुम सखियों के साथ मिलकर उन्हें भोजन कराओगी । कितने ही तरह के व्यंजन, थाल, मूल और पकवान उनके सामने धरोगी । जब फल दोगी , तब प्रेम से तुम्हारे नाक का बेसर डोलेगा और यह देखकर नागर विभोर हो जाएँगे । इस दृश्य को देखकर, वह विदूषक मधुमंगल हँसेगा और कहेगा कि – “क्या सखा, भोजन में बैठने के बाद तुझे कोई रोग तो नहीं हो गया ? तू तो थरथर कांप रहा है और भोजन नहीं कर रहा । अच्छा ठीक है, जो यह अमृत गुटिका है वह तुम मेरी थाली मे डाल दो । तुम्हारा रोग इसी वक्त ठीक हो जाएगा । “
हे सुमुखी, मधुमंगल के बातें सुनकर सखियों के साथ तुम भी ज़ोर ज़ोर से हंस पड़ोगी । तुम्हारे चेहरे की हँसी को देखकर मैं परम सुखी हो जाऊंगी । मेर तन पुलक से भर जायेगा । श्यामसुंदर अपने सख़ाओं के साथ कितनी कितनी मस्तियाँ करते हुए भोजन करेगा।
भोजन के बाद श्यामसुंदर चौकी पर जाकर बैठेगा । सुवासित जल से उनका मुँह धुलाऊँगी और पतले कपड़े से पोछूँगी । ललिता नागर के मुँह में तांबूल देगी । और वह शयन मंदिर में जाएँगे । तुम सखियों के साथ मस्ती से भोजन करोगी । और फिर आकर चौकी पर बैठोगी । मैं सोने की झारी में जल लेकर तुम्हारे हाथों में दूँगी और तुम अपने मुख-कमल को धोओगी । मंजुलाली एक बहुत अच्छी मंजरी है ; अच्छी सेवा करती है । वह पतले कपड़े से बड़े जतन के साथ तुम्हारा मुख पोंछेगी । तुम नागर की बाईं तरफ जाकर आनंद से बैठ जाओगी । मैं तुम दोनों के मुख में तांबूल दूँगी । रत्नपलंग पर फूलों के पंखु्ड़ियाँ बिछाऊँगी । उसपर एक पतला वस्त्र बिछाऊँगी । आनंदित होकर श्याम और गौरी उस पर सोएंगे और प्रिय सखियाँ सेवा करेगी । दीन हीन कृष्णदास की यही प्रार्थना है, कि कब वह उन गुलाबी चरणों का संवाहन करेगा ?
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हे राधे, तुम्हारे चरण कितने सुंदर दीख रहे हैं ! क्योंकि रूप मंजरी ने उन्हें बड़ी अच्छी तरह सजाया है । तुम व्रजेन्द्रनंदन की बाहों में सर रखकर आराम कर रही हो । हाय ! उन सुंदर चरण कमलों को कब मैं आहिस्ता आहिस्ता सहलाऊँगी ? उस सेवा माधुरी का आस्वादन करके आमोद मे डूब जाऊंगी । हे हेम गौरी, कब इस किंकरी को ऐसा आनंद मिलेगा ?
ओ रूप मंजरी, तुम राधिका के इशारे पर सखियों के संग भोजन करने जाओगी । तुम सभी नर्मसखियों को लेकर भोजन करने बैठोगी । मैं आनंदित होकर पकवान परोसूँगी । भोजन करने के बाद तुम खुशी से आचमन करोगी । फिर पलंग पर जाकर सो जाओगी । ओ रूप मंजरी, कब वह शुभ दिन आएगा, जब यह नई किंकरी तुम्हारे चरण कमलों को धीरे धीरे सहलाएगी ?
हे प्यारी रूप मंजरी ! तुम अपना चबाया हुआ तांबूल मेरे हाथों में दोगी । उसे पाकर मैं प्रसन्न चित्त से मंजुलाली के कमरे में जाऊंगी और उनके चरणकमलों की सेवा करने के बाद चंपक मंजरी और गुण मंजरी के चरणों को भी संवाहन करूँगी । फिर राधा कुंड में स्नान करके, अच्छा वेश भूषा पहनकर तुम सबका प्रसाद पाऊँगी । इससे मेरा अंग पुलक से भर जाएगा ।
प्रफुल्लित होकर भोजन घर धोऊँगी । फिर गुणमणि के चरणों तले सो जाऊंगी । हे रूप, इस कृष्णदास का ऐसा नसीब कब होगा कि मैं तुम्हारी दासियों के साथ रह पाऊँगी ?