वृन्दावन – ६

तुम्हारे अंगों को सुगन्धित तेल से मार्जन करूँगी । वह तेल कैसा होगा ? वह गुलाबी रंग का बहुत ही मनोरम तेल होगा । और उसमें ढेर सारा नया कुंकुम मिश्रित होगा । तुम्हारे तन पर उबटन लगाकर,  फिर, आँवले से तुम्हारे भारी केश का मार्जन करूँगी । हा हा कुंकुमांगी[1] ! कब मेरा ऐसा नसीब होगा कि मैं सुगन्धित जल सोने की झारी में भरकर श्री रूप मंजरी के हाथों में अर्पण करूँगी?

वह तुम्हें स्नान कराएगी और फिर श्री रति मंजरी कपड़े से तुम्हें पोछेंगी । ओ मेरी गोरी सखी, श्री गुण मंजरी नीलाम्बर लेकर झट से तुम्हें पहना देगी । अपने प्रिय सखियों के संग तुम रत्नवेदी पर आकर बैठोगी । दीन कृष्णदास सदा से यही आशा करती है कि वह बड़े आनन्द के साथ तुम्हारी सेवा करेगी ।


 


[1] जिनके बदन पे कुंकुम का लेप लगा ह