१०
बड़े ही उत्कृष्ट धूप और अगुरु जलाकर उससे तुम्हारे भारी केश सुखाऊँगी और फिर उसमें चंद्र चूरण लगाऊँगी । तुम्हारे केश भार को हाथों में पकडकर , सोने की कंगी से धीरे धीरे शोधन करूँगी । हा हा मुक्तकेशी[1], मैं चम्पक फूल से उसे सजाऊँगी । विचित्र वेणी बनाऊँगी । ऊपर मैं एक सुन्दर चामरीका लगाऊँगी और सुन्दर परान्दे लटकाऊँगी ।
तुम्हारे ललाट में मणियों की चूडा सजा दूँगी । और बडे ही प्रेम से तुम्हें सिन्दूर की बिंदी पहनाऊँगी । चंदन को बारीख पीसकर सिन्दूर बिन्दी के चारों तरफ बिन्दू रचाऊँगी । और तुम्हारे बिन्दी ऐसे लगेगी जैसे कि सूरज के चारों तरफ चाँद की माला खिल रही है ।
तुम्हारी आँखों में काजल लगाऊँगी । और तुम्हारे गालों पर मकरिका का चित्र बनाऊँगी । तुम्हारे कानों में गोलाकार कुण्डल पहनाऊँगी ।
तुम्हारी नाक तिल फुल के समान है । उसपे उत्कृष्ट गज मुक्ता पहनाऊँगी जो हमेशा तुम्हारे होटों पर डोलता रहे । तुम्हारे चिबुक पर कस्तूरी बिन्दु सजाऊँगी । और फिर तुम्हारे चन्द्र मुख का दर्शन कर के आनन्द सागर में डूब जाऊँगी ।
बाहों का उपरी हिस्से में सोने का अंगद पहनाऊँगी । और हाथों में नील चूडियाँ जिसमें मणी जडा हो । तुम्हारे उंगलियों में जतन से अंगूठी पहनाऊँगी । तुम्हारे वक्ष स्थल पर फूल और पत्ते की रचना चित्रित करूँगी । मैं कब इस तरह से तुम्हारे सोने जैसे कुचों को सजाऊँगी ? तुम्हारे वक्ष पे गुलाबी रंग की कंचुकी पहनाऊँगी और झट से उसे पीछे से रेशम की डोरियों से बाँधूँगी । तुम्हारे गले में मोतियों का हार पहनाऊँगी । और मालती फूलों की माला पहनाऊँगी जिसके बीच में बहुत ही सुन्दर लोकेट हो ।
तुम्हारे पतले कमर पर किंकिणी जाल पहनाऊँगी जिसके बीच लाल रंग की मणी जडा हो । तुम्हारी कमर कितनी सुन्दर लगेगी !! तुम्हारे चरण कमल पर हंसक नूपुर पहनाऊँगी । और सुन्दर कमलों की पंखुडियाँ जैसे उन्गलियों पर सोने की अंगूठी पहनाऊँगी ।
तुम्हारे चरण कमलों को अपने वक्ष में धरकर अलता पहनाऊँगी । अलता रस से तुम्हारे चरणों पर सुन्दर चित्र बनाऊँगी और फिर यह नयी किंकरी उनका दर्शन करेगी । तुम्हारे पूरे तन को कुंकुम और चंदन के चित्र से सजाऊँगी; हाथों में दूँगी एक नील-कमल । मणियों से जडित सीसे को तुम्हारे सामने पकडकर तुम्हें अपना सुन्दर चांद मुख का दर्शन कराऊँगी । फिर कर्पूर की बत्ती से तुम्हारी आरती करूँगी । हे गौरी , मैं कितनी आनंदित हो जाऊँगी !!
तुम्हारे मधुर रूप का दर्शन करके, मेरे नयनों में अश्रु झर रहे होंगे । और फिर एक कोने में जाकर खडी हो जाऊँगी । अहा हेम गौरी ! तुम्हारी प्रिय सखी गुण मंजरी के साथ कब यह दीन हीन कृष्णदास सेवा-आनंद में मगन हो जाएगा ? मेरा ऐसा नसीब क्या कभी होगा ?
११
स्नान के बाद तुम सजधज कर सखियों के साथ आकर रत्न पलंक पर सुन्दर आसन पे बैठोगी । इसी वक्त वह सखी श्यामला-सुन्दरी प्रवेश करेगी । दूर से ही होठों पर कपडा रखकर वे थोडी थोडी मुस्कुराती हुई आएगी । वह आते ही तुम उसे अपनी बाहों में भर लोगी और फिर उसे अपने आसन पर बायें की तरफ बिठाओगी ।
तुम पूछोगी कि सखी, इतने सवेरे क्यों आई हो ? वह कहेगी – “ तुम्हें सुबह सुबह देखने से मेरा पूरा दिन अच्छा जाता है। जैसे कुछ लोग होते हैं – वे रोज़ ही सवेरे सवेरे स्नान करते हैं । यह उनका नियम होता है । वैसा ही मेरा नियम है कि सुबह होते ही तुम्हारा दर्शन करना । अगर तुम्हारा दर्शन नहीं हुआ तो मुझे बडी बेचैनी होती है । तुम भी तो हंसकर अपने दिल की बात बताती हो, है न ? तुम कहोगी – अच्छा हुआ जो विधाता ने हमें मिला दिया । मेरी भी बडी इच्छा हो रही थी तुमसे मिलने की ।”
और फिर तुम दोनों रस की मूरत बनकर रस कला के बारे में चर्चा करोगी । कृष्णदास कह रहा है कि कब वह दिन आएगा जब मैं उस रस आलाप को सुन पाऊँगा !!
अब श्यामा सखी तुम्हारे मुख चंद्र को देखकर हंसती है और हौले हौले बोलती है – “ मुझे मालूम है कि तुम रात में अमृत की गंगा मे स्नान कर चुकी हो । और इससे तुम पवित्र हो गई हो । तुम्हारा स्नान कैसा रहा उस रस गंगा में, यह तो बताओ ? यह सुनकर मैं भी निर्मल चित्त हो जाऊँ्गी !!” तुम हसकर जवाब दोगी – “सुन सखी, मेरा स्नान तो नहीं हुआ” । वह कहेगी – “तो फिर तुम्हारे हर अंग पर ये निशान कैसे ? और तुम्हारी आँखें गुलाबी कैसी ? ” श्री गुण मंजरी कहती है – “ऐसे रसालाप पे मैं बलिहारी जाऊँ ! कब उसे विस्तारित रूप से मैं वर्णन करूंगी ?”
१२
ईश्वरी ने कहा – “दिल लगाकर सुन सखी कि क्या हुआ । जब मैंने नील कांति धारा में प्रवेश किया, तब मेरे सामने दो नटराज आ गए । उनके नाम हैं – आनंद और मदन । वे आ कर मेरा सब कुछ बिगाड दिया । मेरे सामने कैसा अद्भुत नृत्य किया कि उन्होंने मेरा दिल भी चुरा लिया और इंद्रियां भी । और इसी तरह से मैं जो स्नान करने गई थी , ये बडे खुश होकर मेरी आशा भंग कर दिया । इसी लिए मेरे अंग पर निशान दिख रहे हैं ।”
हे राधे, कब तुम्हारे मुख से ऐसे मधुर वचन सुन पाऊँगी ? अपने कानों से कब मैं तुम्हारे वचनामृत को पान करूँगी ? हा हा प्राणेश्वरी, मेरी अभिलाषा पूरी करो । दातों में तृण पकड़कर दीन कृष्णदास तुमसे यही प्रार्थना करता है ।
१३
अहा देवी ! कब मैं तुम्हारे बाह्यागार हर रोज़ साफ करूँगी ? उसे बहते हुए पानी से धोऊँगी । अपने केश से उसका मार्जन करूँगी । इस प्रेम भरी सेवा से मुझे कितना आनंद मिलेगा ! फिर स्नान करके तुम्हारे नज़दीक आऊँगी । हे देवी, ये सब सेवाएं तुम मुझे कब दोगी ? अपनी दासियों में मेरी गिनती कब करोगी ? दासियों में मुझे सबसे छोटी जानकर, कितने प्यार से सब सेवाओं को कराओगी !
१४
सखी ललिता के संग मैं भी तरह तरह की मिठाइयाँ बनाऊँगी । कितनी खुशी होगी मुझे !! सूर्य देव को चढ़ाने केलिए उन सब मिठाइयों को मणिमय पात्रों में भरूँगी । सोने की थाली में अन्न सजाऊँगी – और देखूँगी – कि तुम्हारे अंग कैसे पुलकित हो रहे हैं – तुम्हारा दिल कितना प्रफुल्लित है ! और तुम्हारा मन श्री कृष्ण के दर्शन केलिए कितना उत्कण्ठित है ! तुम बार बार राह की तरफ देखोगी, कुन्दलता आ रही है कि नहीं ?
रात में पीत वसन हमारे पास ओढ़नी बनकर तुम्हारे साथ आ गया था । मैं उसे छूपाकर ले जाऊँगी । वह देखकर तुम आनंद से अपने कोमल हाथों से मेरे पीठ पर मारोगी । तुम्हारे हाथों के स्पर्श से मैं आनंद से भरपू्र हो जाऊँगी और इस कृष्णदास के शरीर में पुलक जाग उठेंगी ।
१५
माता व्रजेश्व्री, अर्थात यशोमति मैय्या, कृष्ण के भोजन के लिए प्यारी कुन्दलता को भेजेगी । कुन्दलता जाकर जटिला को सब कुछ बताएगी । जटिला तुम्हारे कमरे में जल्दी से आएगी । वह प्यार से तुम्हें बुलाकर कहेगी – “बेटी , नंदरानी ने कुन्दलता को भेजा है । तुम वहाँ जाओ रसोइ करने । ”
जब वृद्धा ने अनुमति दे दी है, तो फिर देर कैसी !! तुम्हारे दिल की कामना पूरी हो गयी ! नंद भवन जाने केलिए तुम झट से तैयार हो जाती हो । अहा प्राणेश्वरी ! कुन्दलता के हाथ पकडकर ललिता आदि सखियों के साथ तुम बडे खूश होकर जाओगी, और तुम्हारी पीछे जल की झारी लेकर मैं भी चल पडूँगी । राह में कितने ही रसीले रस कथा कुन्दलता पूछेगी और सखियों के साथ कितना हर्ष-आलाप होगा । तुम्हारा अंग अति पुलकित होगा और तुम्हारी गति मन्थर हो जाएगी । तुम्हारे चित्त में कृष्ण सुख का अनुभव जो हो रहा होगा ! तब ललिता इशारा करेगी और तुम अपने आप को संभालोगी ।
नागर श्याम सुन्दर तो तभी गोशाला में होंगे । तुम्हें देखकर खुशी के मारे उछलते हुये तुमसे मिलने आएँगे । तुम्हारा रूप रंग देखकर गिरिधारी को इतना आनंद होगा कि उनके नयन चंचल हो जाएँगे । झट तुम्हें बाहों में भर लेंगे और पुलक से अंग भरपूर हो जाएगा । वे तुम्हारे मुख कमल को चूमने लगेंगे । यह देखकर ललिता कहेगी – “ओ हो, सुनो , नागर राय, राह पे तुम यह क्या खिलवार कर रहे हो !! यहाँ से लोग आते जाते रहते हैं । तुम्हें कोइ शरम है ? तुम्हें कोइ डर भी नहीं। अरे छोडो छोडो, मेरी प्रिय सखी को ।” तब प्यारी ललिता सखी बहुत जोर से गिरिधारी के हाथ पकड लेती है और तुम्हें उनके बाहों से छुटकारा दिलाती है । तब कितना कितना मज़ा आएगा !! नागर गोशाला में लौट जाएँगे । कब मैं यह दृश्य इन आँखों से देख पाऊँगी ?
फिर हम नंदीश्वर के खास भवन में पहूँचेंगे और व्रजेश्वरी यशोमती मैय्या के चरणों में प्रणाम करेंगे । मैय्या हमें गोद में ले लेगी । तुम्हारे मुख को चूमेगी । उनके आँखों में आंसू भर आएगा । मैय्या के चरणों में मैं जब दण्डवत करूँगी , मेरा अंग पुलक से भर जाएगा । कृष्णदास यही आशा करता है कि वह दिन कब आएगा जब तुम्हें यशोदा मैय्या की गोदी में वह देखेगा ? और प्रेम के तरंगों का अनुभव करेगा ?
[1] जिसके केश खुले हैं