शारी-शुक संवाद

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शारी-शुक का वर्णन

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कब वह शुभ दिन आएगा जब मै गुणमंजरी के पीछे पीछे निकुंज में प्रवेश करूँगी ? नागर और नागरी लीला के परिश्रम से थक कर सोए रहेंगे । उनका दर्शन करके मेरा हृदय तृप्त होगा । मैं श्री रूप मंजरी का इशारा पाकर उनकी चरण सेवा करूँगी । युगल सरकार शेज से उठकर पलंग पर बैठेंगे । उनके चरण धरती पर होंगे । मैं सुवासित जल लाकर उनके सुंदर मुख धुलाऊँगी, और फिर आनंद से पोछूँगी ।

 

एक छोटी झारी में कर्पूर से सुंगंधित जल लाकर दूँगी । दोनों उस जल को पान करेंगे ।  दोनों के मुख में कर्पूर और तांबूल दूँगी । हाय, कब ऐसा दिन आएगा ? फिर वे दोनों मदन सुखदा की उत्तर में, जहाँ मालती पेड़, उसकी छाया में जाकर बैठेंगे । उनके साथ प्रिय सखियाँ भी होंगी । वृंदा बड़े आनंद से दोनों के हाथों में शुक और शारी को लेकर सौंप देगी । वे दोनों शुक शारी को तरह तरह की कविताएँ सिखाएँगे । मस्ती भरी बातें सिखाएँगे । कब वह दिन आए जब कृष्णदास उस शारी और शुक का कथामृत वार्ता पान करेगा ? अहा श्री युगल सरकार ! जल्दी से मेरी अभिलाषा पूरी करो ।

 

 

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शुक कहता है – शारी, ध्यान देकर मेरे प्रभु के गुण सुनो । इन तीनों जगत में जितने भी गुणवान हैं, मेरे प्रभु से कम हैं । इन तीनों जगत में जितनी भी युवतियाँ हैं, श्याम सबके चित्त हरण करते हैं । खास करके गोकुल की युवतियों के दिल । यहाँ की युवतियाँ तो उनके पीछे दीवानी हैं । श्यामसुंदर का सौंदर्य तो इनके काम भाव को बहुत ज़्यादा भड़काती  है ।  वे मदन-ज्वर से पीड़ित होकर श्याम का भजन शुरू कर देती हैं । उनका रूप तो ऐसा है, कि वे करोड़ों काम देव को जीत लें । इसीलिए तो उनका नाम मदन मोहन है!

 

शुक की बातें सुनकर शारी हँसने लगती है । वह कहती है – हाँ हाँ, वह तो तभी तक मदन मोहन है जब तक उसकी बाँई तरफ प्यारी रहती हैं । एक दिन मेरी प्राणेश्वरी रासलीला के वक्त छुप गयी थी । तब तुम्हारे ये “मदन मोहन” नाम धरने के लायक नहीं रहे थे ।

 

शारी की बातें सुनकर नागर भी हँस पड़ते हैं । गुण मंजरी हँस कर कहती है – “हाँ शारी, अच्छी कही !” अब शारी कहती है – “अभी मेरी ईश्वरी के गुण सुनो जिनपर तुम्हारे मदन मोहन न्यौछावर जाते हैं ।“

 

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शारी गाने लगती है – “ मेरी राधारानी का रंग सोने जैसा है और कुमकुम का भी गर्व हर लेता है । उनकी अंग-कांति बड़ी सुंदर है । उन्हें आप देखेंगे तो गोरोचना की निंदा करेंगे । उनकी अंग का गंध कर्पूर, अगुरू और जितनी भी खुशबूदार वस्तुएँ हैं, उन सबको हरा देगी । ये श्याम सुंदर तो राधा के पुजारी हैं । वे तो हमेशा राधाराणी के रूप एवं गुण की वंदना करते रहते हैं । अनंत ब्रह्मांड में जितनी भी लक्ष्मियाँ हैं, वे सब राधा के चरण के एक नख की बराबरी नहीं कर सकती । प्रियाजी उल्लास के साथ हमेशा कृष्ण संग की अभिलाषा करती रहती है । इसीलिए तो वह नीलाम्बर पहनती है !  सूरज जो कमल का मित्र कहलाता है, वह भी खूबसूरत राधाराणी की आराधना करता है । वह सुकुमारी है और अति सुमाधूरीमय है । जीतनी भी स्निग्ध वस्तुएँ हैं, जैसे, चंदन, उत्पल, चंद्र और कर्पूर – उनकी स्निग्धता राधा ठाकुराणी के सामने कुछ भी नहीं है । श्यामसुंदर को खुद का स्पर्श देकर, वे उनकी कामना को बुझाती है ।

 

सुवदनी राधा हमेशा श्री कृष्ण को सुखी करती है । रमादेवी, जो सती-शिरोमणि कहलातीं हैं, वे भी राधाराणी के सामने कुछ भी नहीं है । उनका रूप और यौवन, राधाराणी के रूप और नव यौवन की तुलना में कुछ भी नहीं हैं । राधा तो सुशीला है और मोहन के काम ताप को सदैव नाश करती है । रास नृत्य में सबसे ज़्यादा पटु वे ही हैं । संगीत कला और नर्म कला मे भी सुपंडिता हैं । प्रेम ही उनका रूप, गुण और वेष है । वे सद्‌गुणों की खान हैं  और पूरे विश्व में वंदनीया हैं । सभी गोपियों मे  वे ही श्रेष्ठ हैं ।

 

उनके विविध भाव ही उनके अलंकार हैं । उनके सुंदर सुंदर भाव, जैसे कि – स्वेद, कंप , अश्रु, मर्ष, हर्ष, गद्‌गद और वाम्य –  इन सभी भावों से वह सजी हुईं होती हैं । वे अपने हर अंग से श्याम सुंदर के नेत्रों को तृप्त करती हैं ।

 

शारी के वचनों को सुनकर, धनी बहुत आनंदित होती हैं और वे शुक-शारी दोनों को बड़े प्यार से सहलाती है ।