ऐसे ही वक्त पर मधुमंगल वहाँ पर आकर कहेगा – ” मैं तुम दोनों का सुख भंग तो नहीं करना चाहता, लेकिन वह पापी जटिला आ रही है । हाय , मैं क्या करूँ ? और ये मुखरा तो पास आ चुकी है । वह देखो ! अब वह करो जो उचित है ।”
कहते ना कहते, बूढ़ी मुखरा वहाँ आ पहूंचती है । वह यहाँ वहाँ प्यार भरी निगाहें डालती है । फिर कहती है – “हाय, मेरी नातिन राधिके , तुम कहाँ हो ? सूर्य पूजा का समय बीता जा रहा है ।“ जब मुखरा इस तरह तुम्हें बुलाएगी, मैं यह दृश्य कब देख पाऊँगी ?
हे देवी, तुम जब बात करोगी , तब ऐसा लगेगा, जैसे अमृत की लहरें बह रही हैं । तुम्हारी मधुर हँसी से सुंगंधित कर्पूर मिश्रित है । मैं कब ऐसे सुंदर दृश्य को देख पाऊँगी और तुम्हारी मधुर बोली सुन पाऊँगी ? हे सुधामुखी, दया करो । मैं तुम्हारे शरण में आई हूँ । अब तुम उत्कण्ठित होकर सूर्य पूजा के लिए सूर्य मंदिर में जाओगी । सूर्यमणि निर्मित सूर्य की वेदी पर, तुम भक्ति भाव से पूजा अर्पण करोगी । मैं सभी पूजा के द्रव्य को तुम्हारे पास लाकर रखूँगी । हे सुमुखी, इस दासी का ऐसा नसीब कब होगा ?
हे विधुमुखी, सूर्य मंदिर में तुम सखियों के साथ बैठी होगी । तब जटिला आकर कहेगी – अरे, तुम लोग ऐसे ही फालतू में समय क्यों गँवा रहे हो ? कुन्दलता बुढ़िया से कहेगी – ” पंडित नहीं मिल रहा है । हम पूजा कैसे करें ?”
तभी श्यामसुंदर ब्राह्मण के वेश मे वहाँ आएगा । यह देखकर, बुढ़िया बहुत खुश होगी । उस कपट ब्राह्मण के चरण पकड़कर बुढ़िया विनती करेगी – ” सुनो ब्राह्मण श्रेष्ठ, मेरी बहू को सूर्य पूजा करा दो । मैं तुम्हें मुँह माँगा इनाम दूँगी । माणिक, रत्न, मोती , मणि , जितना चाहिए, उतना दूँगी । “
ब्राह्मण कहते हैं – “मैं धन स्पर्श नहीं करता हूँ । दूसरे ब्राह्मणों की तरह लोभी नहीं हूँ । मैं तो तुम्हारी बहू पर कृपा करके यूँही सूर्य पूजा करा दूँगा ।”
उस ब्राह्मण को देखकर उल्लास के साथ कृष्णदास कब हँसेगा ?
हे प्राणेश्वरी ! तुम सूर्य मंदिर के अंदर जाकर आसन पर बैठोगी । आनंदित होकर मैं सूर्य पूजा के सामान लाकर दूँगी । कब मेरा ऐसा नसीब होगा ? घट में जल भरकर आगे रखूँगी । चंदन, फूलों की माला, नैवेद्य आदि सजाऊंगी ।
वह कपटी ब्राह्मण मुस्कराकर मीठे बोल बोलेगा । वह कहेगा – ” सर पर आँचल रखकर सूर्य पूजा नहीं की जाती । ऐसा वेदों में लिखा है । ” यह सुनकर कुन्दलता हंसकर तुम्हारा घूँघट खोल देगी । तुम्हारे मुख की शोभा देखकर, ब्राह्मण के शरीर में इतना पुलक होगा कि वह कदंब फूल की तरह दिखने लगेगा । फिर वह कहेगा – ” बोलो, मित्राय नमः स्वाहा ।” और वह मंत्र उच्चारण करने लगेगा । तुम पूजा की सामग्री से सूर्य की पूजा करोगी । हाथ जोड़कर, सर नवाकर, स्तुति करोगी । और अपने मन की अभिलाषा माँग लोगी।
मधुमंगल झट से नैवेद्य को अपने आँचल में बाँध लेगा । बुढ़िया कहेगी – ” सुनो ब्राह्मण श्रेष्ठ , तुम शास्त्रों को भली भाँति जानते हो । मेरी बहू का हाथ देखकर थोड़ा बता दो ना कि शुभ अशुभ क्या है ?” ब्राह्मण उत्तर देगा – ” मैं तो सपने में भी नारी को स्पर्श नहीं करता हूँ । ” यह सुनकर घूँघट में मुँह छुपाकर, कृष्णदास कब हँसेगा ?
बुढ़िया के बहुत आग्रह करने पर, ब्राह्मण दूर से तुम्हारा हाथ देखेगा और कहेगा – ” तुम्हारे बेटे और बहू का बड़ा ही मंगल होगा । ” जटिला खुश होकर तुम्हारा हाथ पकड़कर कहेगी – ” और बताओ, और बताओ ।” तुम्हारे हाथों की शोभा देखते हुए ब्राह्मण कहेगा – “ओ हो ! लेकिन कुछ कठिनाई है । तुम्हारे बेटे की आयू की रेखा के ऊपर, राहु और केतु दोनों जम कर बैठे हैं । यह बहुत सती साध्वी है, पतिव्रता है । इसीलिए वे लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं । नहीं तो कब का तुम्हारे गौ, पुत्र और परिवार का विनाश हो गया होता । अगर तुम बेटे का कल्याण चाहते हो , तो मेरी बात ध्यान से सुनो । हर रोज़ तुम्हारी बहू से सूर्य पूजा कराना । क्योंकि सूर्य देव सर्व सुमंगल दाता है ।“
इसी वक्त सुबल सखा ब्राह्मण को लेने आएगा । श्री गुण मंजरी कहेगी – “अब दिन समाप्त हो गया, चलो घर चलो ।”
सूर्य मंदिर में कितना मज़ा आएगा ! बुढ़िया अपने घर लौट जाएगी । प्राणवल्लभ के विरह में धनी दुखी होगी । कंठ से मोतियों की माला धीरे धीरे तोड़ेगी । हे प्राणेश्वरी , तुम मुझसे कहोगी – “मोतियों को उठा लो ।“ मैं धीरे धीरे मोतियों को समेटकर आँचल में बाँध लूँगी । इस मौके पर तुम तृषित चकोरी के समान श्याम के चाँद मुख की माधुरी का पान करोगी । सखियों के साथ धीरे धीरे तुम अपने घर लौट आओगी । मैं तुम्हारे चरण कमलों को धूलाकर, अपने केश से पोछूँगी । तुम प्राणवल्लभ की विरह व्यथा में व्याकुल हो जाओगी । तुम जा कर फूलों की शय्या पर सो जाओगी । तब मैं तुम्हारे पूरे शरीर पर सुचंद्र चंदन का लेप लगाऊँगी । कमलों की पंखुड़ियों से हवा करूँगी । तुम्हारे शरीर का ताप देखकर इस कृष्णदास का तन मन जलने लगेगा ।