गौरचन्द्र बसंत-विहार के भाव में –

 

देखो देखो गौरचन्द्र, करे कितने रंग,

विविध विनोद कला और प्रेम-तरंग ।

 

विपुल पुलक से आकूल सब तन,

आनन्द-नीर से भरे हैं नयन ।

 

भावावेश में कहे प्रभु होके अधीर,

जीत गयी मेरी सखियां, ओ गोकुलवीर !

 

कभी चले अदा से मृदु हंसकर,

कभी त्रिभंगिम होकर फेरे तिरछी नज़र ।

 

बसन्त में राई-कानू करें जैसा विलास,

प्रभु भी उसी लीला को करें प्रकाश ।

 

कान्हाप्रिया की यही अभिलाष,

इस मूढ को बनाओ तोंहार दास ।