राधा-कुण्ड के पास जब वर्षा करे हास
और बकुल कदम्ब झूमे,
हर दो शाख पर हिन्दोला रतन-डोरी की माला
बीच बीच में मुक्ता चूमे ।
पंखुड़ियों को चूरन कर पतले वस्त्र में भरकर,
सखियों ने बनाया तकिया,
पट्टे के ऊपर डालकर डोरी से चार कोने बांधकर
कितना सुन्दर झूला है बनाया ।
कान्हा झूले पे पहले उठकर जा बैठे डोरी को पकड़कर
फिर राधा को खींच के बिठाया,
एक मुट्ठी से डोरी को धरकर पैर से पट्टे को चापकर,
प्यारी जु का बदन निरखा ।
घेर लिये सब मीत गाये विविध गीत,
करें फूलों से आरति,
कहत वैष्णव दास होवे बहुत उल्लास,
दिल में रखो जुगल-प्रीति ।
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आनन्दित सखियां मन्द मन्द झूलावत,
और निरखत जुगल वदन,
जब अवकाश पावत, ताम्बूल देवत,
होकर हरषित मन ।
बाकी सखियां इत्र-पराग लेकर
और हाथों में चन्दन,
नागर-नागरी के बदन पर
डाले होकर मगन ।
कोई सखी करे नर्तन,
मोहन मृदंग बजाये,
विविध यन्त्रों पे छेड़े तान,
मधुर सुस्वर गाये ।
देवियां देखकर विव्हल होवे,
आकाश-पथ से देखें,
कान्हाप्रिया कहे, फूल बरसावें,
जुगल-माधुरी निरखें ।
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अरी सखी, ज़रा देख तो झूलन-रंग,
मन्द वेग से डोल डोलकर अलस दोनों अंग ।
थोड़ी बन्द थोड़ी खुलीं, आंखों में नींद भरे,
अर्ध विकसित कमल जैसे, उनमें नील भौंरे ।
जब वे भरे जम्हाई तो खुशबू यूं पसरे,
कि मधुकर मत्त होकर दोनों को घेरें ।
चेहरे देखकर उनके, भौंरों को हुआ भ्रम,
उनको लगा, ये हैं नील-स्वर्ण कमल सम ।
हिन्दोला पर वे गाने लगे मीठे मीठे गान,
झोंकों के साथ वे छेड़ने लगे नये नये तराने ।
राई-श्याम के अंग पाकर मत्त हो गये,
मदहोश होकर मधुकर परिमल भूल गये ।
कान्हाप्रिया कहे, देखकर दोनों जन,
आनन्द से नाच उठा मेरा अन्तर-मन ।
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नटखट नागर अति वेग से झूलाये,
सखियां करे निषेध, राई त्रास पाये ।
अरे रे ! धनी की खुल गयी वेणी,
शिथिल हो गयी कंचुक ओढ़नी ।
गिरने लगे धनी के गहनोंसे मणियां,
उड़ते वसन को देखकर हंसे नागर-मणिया[1] ।
अरे रे ! पसीने से धनी का अंग भर रहा,
कनक कमल से जैसे मकरन्द झर रहा ।
अरे रे ! धनी की यह अपरूप शोभा,
कान्हाप्रिया कहे, “कानू की है मनलोभा” ।
२८
वेश-केश हैं विचलित, कुच-कंचुली विगलित,
उड़ रही पहिरन वास,
कभी तो गोरा तन को ढंक लेवे वसन,
कभी हो जाये परकास ।
सुन्दर दरशन हर लें तन-मन,
कर दें हमें दीवाना,
यह दृश्य हसीन झूलन-रंगीन,
प्रीतम जु परवाना ।
राई के हर तन देखकर मोहन
के दिल में मदन-तरंग-लोल,
खूब वेग बढ़ाये राई को सताये,
ओझल हुआ हिन्दोल ।
हाथ से डोरी फिसली राई बोले विनती-बोली,
और पकड़ लिया कानू का कण्ठ,
झूलने लगी ऐसे कोई कमलिनी जैसे
झूलती है माला गज के कण्ठ ।
राई कानू ऐसे सोहे भक्तन के मन को मोहे
रूप माधुरी अपार,
नवघन बीच खेलत जैसे बिजुरिया डोलत
रस बरसे अनिवार ।
उद्धव-प्रभू चतुर-शिरोमणि जान बूझके डराये राईमणि
बार बार करे झूले को ओझल,
ताकि राई डरके उनसे लिपटें और वे इस बात पे मुस्की काटें,
राई उनके हृदय से है डोल ।
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अतिशय श्रम से पसीना छूटे है,
हिन्दोला किया सुस्थिर,
रतिमंजरी चंवर डुलावे है,
मृदु मृदु करत समीर ।
ललितादि सखी देखें सुधामुखी[2],
कुसुम से करे निछाई[3],
हिन्दोला से जब उतरीं चन्द्रमुखी[4],
कुसुम-कानन[5] में लाईं ।
राई को बांये लेकर बैठे नागर,
दासियां करें सेवा,
खुश्बूदार पानी लाये भरकर,
करें प्रेम-सेवा ।
कर्पूर-ताम्बूल मुख में देवें,
तो कोई बीजन करे,
कान्हाप्रिया पग सोह्वे [6],
सखियां इंगित करें ।
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[1] प्रेमियों के मुकुट-मणि (श्यामसुन्दर)
[2] राधारानी
[3] निर्मञ्छन, आरती
[4] राधारानी
[5] फूलों का बगीचा
[6] पाद-संवाहन करता है ।