दोनों जन विलासे कुंज के माझ,
रसवती गोरी और रसिक-वर-राज ।
एक दुजे को देख दोनों मुस्कुराये,
उन्हें देख सखियां अधिक उल्लसये ।
चंवर डुलावत कोई सखी हसीन,
ताम्बुल खिलावत होके रंगीन ।
कितनी ही मस्ती और हास-परिहास,
आनन्द में मगन हुआ वल्लभ दास ।
दोनों जन विलासे कुंज के माझ,
रसवती गोरी और रसिक-वर-राज ।
एक दुजे को देख दोनों मुस्कुराये,
उन्हें देख सखियां अधिक उल्लसये ।
चंवर डुलावत कोई सखी हसीन,
ताम्बुल खिलावत होके रंगीन ।
कितनी ही मस्ती और हास-परिहास,
आनन्द में मगन हुआ वल्लभ दास ।