आधा पग चलकर उनका वह लौटना….
हाय ! एक दूसरे को फिर से वह चूमना……
दोनों की आंखों से जल-धारा बहई,
रो-रोकर सखियां चल न सकई।
भीत चकित चारों ओर निहारतीं[1] ,
खु्ले कुसुम और भारी कुन्तल[2] संभालतीं।
नुपूर और गहनों को आंचल में समेटना…….
हाय ! बहुत दुखी होकर घर को वह लौटना…………
बार बार देखें, पर देख न पायें,
विरह-आंसू से वसन भीगायें ।
जब घर बहुत नज़दीक आया,
पीत-वसन[4] में अंग को छुपाया ।
सर से पांव तक वसन में वह छु्पना……….
हाय ! दबे पांव से उनका आहिस्ता चलना……….
अपने मन्दिर में जब वे लौटीं,
गुरुजनों के कमरे में झांककर देखीं ।
डर था कोई जाग रहा होगा
सचकित होकर फिर से देखा ।
नित्य दोनों का ऐसे विलास में खोना…………
हाय ! दास बलराम के दिल को तड़पाना………..
[1] बारीकी से देखना
[2] घने केश-पाश
[3] भारी
[4] राधारानी ने कन्हैयाजी के पीले वस्त्र से अपने अंग को ढंक लिया
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