निशान्त लीला – बलराम दास – ९

  


 आधा पग चलकर  उनका वह लौटना….


हाय ! एक दूसरे को फिर से वह चूमना……


 


दोनों की आंखों से जल-धारा बहई,


रो-रोकर सखियां चल न सकई।


 


भीत चकित चारों ओर  निहारतीं[1] ,


खु्ले कुसुम और भारी कुन्तल[2] संभालतीं


 


नुपूर और गहनों को  आंचल में  समेटना…….


हाय ! बहुत दुखी होकर घर को वह लौटना…………


 


बार बार देखें, पर देख न पायें,


विरह-आंसू से वसन भीगायें ।


 


जब घर बहुत नज़दीक आया,


पीत-वसन[4] में अंग को छुपाया ।


 


सर से पांव तक वसन में वह छु्पना……….

हाय ! दबे पांव से  उनका आहिस्ता चलना……….


 


अपने मन्दिर में जब वे लौटीं,


गुरुजनों के कमरे में झांककर देखीं ।


 


डर था कोई जाग रहा होगा


सचकित होकर फिर से देखा ।


 


नित्य दोनों का ऐसे विलास में खोना…………

हाय ! दास बलराम के दिल को तड़पाना……….. 



[1] बारीकी से देखना


[2] घने केश-पाश


[3] भारी


[4] राधारानी ने कन्हैयाजी के पीले वस्त्र से अपने अंग को ढंक लिया



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