निशान्त-लीला – माधव दास – ८

 

अपने अपने  मन्दिर को लौटते हुये,  मुड़ मुड़ कर एक-दूजे को देखते हुये,

दिल में प्रेम-खीर-सागर उछलते हुये, सघन आंसू से नयन भीगते हुये ।

 

ओह माधव ! विदाय-प्रणाम कर रही हूं,

तेरा प्रेम साथ लिये जा रही हूं,

दर्शन का प्यास दिल में भर रही हूं ।

 

दर्द भरे दो दिल, उछला प्रेम-तरंग,

मुर्छित राई, मुर्छित माधव,

कब होगा दोनों का संग ?

 

ललिता सुमुखी,  “सुमुखी[1]” पुकारे, राई को लेकर गोदी में,

सखियां  ”कानु कानु” पुकारे, आंखें भीगीं आंसूवन में ।

 

कहां गया भोर होने का डर, कहां गया दारुण[2] लोक-भीत[3],

कहे माधव[4] – “बेपरवाह हैं दोनों, अद्भुत प्रेम-मुग्ध-चरित[5] “।



[1] राधारानी

[2] भयंकर

[3] लोक-भय

[4] कवि माधव-दास

[5] प्रेम का रीति है, कि दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हैं, जग का परवाह नहीं है