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(शेखर राय)
आलियां[1] जागीं अलियों[2] के गान से,
चारों तरफ देखीं चकित नयनों से ।
चंचल चित्त से चलीं निकुंज की ओर,
कुसुम शेज पर दोनों सो रहे विभोर ।
विगलित[3] कुन्तल[4], विगलित वास,
देखकर सखियां करे परिहास ।
जागो जागो सखि, प्यारे श्यामल,
दस दिक हुये देखो सुन्दर निरमल ।
कुमुदिनी से भौंरें कमल को गये,
गुरुजन भी अब तक बाहर आये ।
हम सब तेरा चेहरा कब तक ताकेंगे,
अब और न रहेंगे, घर को चलेंगे ।
यह सुन वे जाग उठे, पर रहे आपस में भोर,
नयन न खोलें, रहें तन-मन से जोड ।
तब सखियों को एक युक्ति सूझ गयी,
वे झूठ बोल्कर उन्हें डराने लग गयीं ।
दोनों उठ बैठे अतिशय डर कर,
शेखर द्वार खोले हंस हंस कर ।
[1] सखियां
[2] भौरें
[3] खुले
[4] जूडा