
Radha-Krishna painting by Raja Ravi Verma
५
(शेखर राय)
रात के अन्त में नागरी-नागर बैठे शय्या पर,
यह देख सखियां हंस कर आयीं मन्दिर-भीतर ।
‘केलि-कल्पतरु[1] लगे रस-प्रकाश करने,
रंगीन रात में जो भी हुआ, उसे लगे बखाने ।
जैसे जैसे रसीलि रंगीलि रात की बातें हुयीं,
नवीन नागरी पिया शर्म से गुलाबी हुयीं ।
दोनों मुख देखकर सखियां हुयीं हरषित,
देख कर दोनों की शोभा हुयीं वे पुलकित ।
पीत वसन से खुद के तन को ढंकती,
सुन्दरी गोरि लाज से मुख को छूपाती ।
तब हरि ने नागरी को गोद में खींचा,
गोरि को जैसे सुख-सिन्धु ने सींचा ।
दोनों के खण्डित वेश खोल रहे रा्ज़,
यह देख ललिता ने सजाया अनुपम साज ।
दोनों के रूप में सखियां मगन हुयीं,
दिन है कि रात यह भी भूल गयीं ।
सबेरा हुआ, ” जटिला” शब्द सुनकर,
राधा-श्याम-गुण गाये कवि शेखर ।
६
(गोबिन्द दास)
हरि अपने आंचल से राई-मुख पोंछकर कुंकुम से सजाया,
मांग निकालकर जूड़ा बनाया और माथे पर तिलक रचाया ।
मांग में सिन्दूर भर दिया
बहुत जतन कर लिखा वक्ष पर
मृगमद से पतियां ।
मणि-मंजीर चरणों में पहनाया, वक्ष पर सजाया हार,
कर्पूर-ताम्बूल दिया मूंह में कर दिया खुद को निसार[2] ।
नयनों के अंजन[3] किया सुरंजन[4], चिबुक पर मृगमद[5] बिन्दु,
चरण-कमल पर जावक[6] से लिखत, क्या कहे दास गोविन्द[7] ।
[1] केलि-कल्पतरु = श्यामसुन्दर एक कल्पतरु हैं जिनसे जो मांगो, वह मिल जाता है । यहां पर उनको केलि-कल्पतरु इसलिये कहा गया है, क्युंकि वे रति-कला में इतने परदर्शी हैं कि वे रति-केलि-वासना को सम्पूर्ण रूप से पूरा कर सकते हैं ।
[2] निछावर
[3] काजल
[4] काजल को फिर से चमकाया, अर्थात, लगाया
[5] कस्तूरी
[6] अलता
[7] श्याम का अन्दाज़-ए-इज़हार के बारे में गोविन्द दास और क्या कह सकता है ? रसिक भक्त खुद ही समझ लें ।
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