निशान्त-लीला – २, ३

(२)

(राधा मोहन दास)

निशांत में जागे शचीनंदन, सुन भौंरे-कोयल के रव,

स्वाभाविक भाव में किया हुंकार[1],  अन्दर उठा द्वितीय भाव ।

निशांत में जागे दोनों जैसे, जागा उनमें वैसा भाव,

प्रकट किया गौरांग ने अब अपना पूर्व[2] भाव ।

नयन कमल से जल बहने लगे, वे अमृत वचन बोलने  लगे,

पुलक से भरा उनका अंग ।

हर्ष, विषाद, शंका जैसे भाव, और न जाने कितने ही भाव

खेलने लगे जैसे तरंग ।

ऐसे प्रतिदिन, विचरते नदिया में, करते पूर्व भाव प्रकाश,

उनका अनुभव मुझे कब होगा, कहे राधा मोहन दास ।

(३)

(बासुदेब घोष)

जागकर बैठे गोरा रत्न-सिंहासन पर,

खुश्बूदार पानी से मुख को धोकर ।

अद्वैत जागकर निताई को जगाये,

दास गण फिर उन का मुख धुलाये

बांये प्रिय गदाधर , दांये निताई,

सामने अद्वैत, ऐसी शोभा की लूं बलई ।

पार्षद गण सब मिलने को आये,

प्रियनर्म भकत गण गौर-गुण गाये ।

श्रीनिवास हरिदास जाये निछावर,

विभोर हो नाच रहे गौर-मुख देखकर ।

मुकुंद और नरहरि प्रेम से विभोर,

देखकर बासु  के सुख का नहीं छोर[3]



[1] हरिबोल

[2] युगल सरकार का भाव

[3] सीमा

One thought on “निशान्त-लीला – २, ३

  1. Radhe Radhe! Aaahaha! Whenever I think of these things, I get full of immense bliss! :mrgreen: Even saṁsāra-magna heart gets sweating inside!

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