प्रातः लीला – कुन्दलता ने जटीला से कहा –

ऐसी ही  हैं ब्रजेश्वरी               उन्हें मालूम नहीं चातूरी

वे ठहरीं परम उदार,

आप कड़वी बातें कहेंगी            तो वे अभी भूल जायेंगी

और करेंगी आपसे प्यार ।

करने को दर्शन      आपके चरण

उन्होंने मुझको भेजा,

“पकड़के चरण               करके निवेदन

उनकी बहू को लाना ।“

उनकी यह ख़्वाहिश                और नम्र गुज़ारिश

सुनोगी मौसीरानी,

पत्थर भी नम होकर               और पिघलकर

बन जायेगा पानी ।

बहू को ऐसे लाना                  जैसे कोई खज़ाना

लोगों का नज़र बचाकर

होशियारी बरतना         ज़रा भी न फिसलना

छुपाकर लाना मेरे घर ।

सुन जटीला माई            फूली न समाई

झट से गयी राई-पास

कुन्दलता के हाथों          सौंपा बहू को

उसे हो गया आश्वास ।

राई के हाथ पकड़कर              खुद के सर पे धरकर

बोली, “ खाओ मेरी कसम

बचाये रखोगी               कभी न छोड़ोगी

इमान, धरम, शरम ।

जसोदा का पुत्तर            है बड़ा बेफिकर

नेम न माने कोई  ।

बुरी उसकी नज़र           उसीसे लागे डर

नीयत उसकी खोटी ।

बचना उसकी निग़ाह से           आना होशियारी से

उसकी छाया न पड़ने पाये”

तुम घर की लक्ष्मी-रानी           और वह लम्पट-चुड़ामणि,

देखो, लोग न हंसने पाये ।

बोली कुन्दलता,             “तुम हो मेरी माता,

चरण स्पर्शुं तेरा,

है साथ कवि शेखर         तो नहीं कोई डर,

वह खयाल रखेगा हमारा ।“