एकान्त में बैठे गोराराय,
पांव से सर तक पुलक से पूरित
प्रेम-धारा बह जाय ।
सहचर गण से कहे वचन
घर में पडे न चैन
नन्द के नन्दन का पाउं दर्शन
तृप्त हो मेरे नयन ।
कस्तूरी चन्दन अंग पे लेपन
माला मणिमय झलके
इस सुन्दर साजसे अंग की आभा से
आलम में नूर छलके ।
काले घने लट हैं फूल ऐसे घेरे हैं
बादल पे बिजुरिया जैसे
मन में श्यामांग देखकर गौरांग
चेहरे पे चिलमन गिराये ।
संग सहचर ले गौरांग सुन्दर
नन्दालय को चले,
दिल-ए-नादान हुआ परेशान
मोहन दास बोले ।