प्रातः लीला – श्री गौरचन्द्र भावावेश में नन्दालय जा रहे हैं –

एकान्त में बैठे गोराराय,

पांव से सर तक             पुलक से पूरित

प्रेम-धारा बह जाय ।

सहचर गण          से कहे वचन

घर में पडे न चैन

नन्द के नन्दन                का पाउं दर्शन

तृप्त हो मेरे नयन ।

कस्तूरी चन्दन               अंग पे लेपन

माला मणिमय झलके

इस सुन्दर साजसे           अंग की आभा से

आलम में नूर छलके ।

काले घने लट हैं             फूल ऐसे घेरे हैं

बादल पे बिजुरिया जैसे

मन में श्यामांग              देखकर गौरांग

चेहरे पे चिलमन गिराये ।

संग सहचर          ले गौरांग सुन्दर

नन्दालय को चले,

दिल-ए-नादान              हुआ परेशान

मोहन दास बोले ।