करके सोलह सिंगार हुई खुश अपार
देख कर अपना रुख़,
कृष्ण अधरामृत पाकर हर्षित
हुआ परम-सुख ।
रंगलता बोली सुन मेरी भोली
राजा की चहेती
कुन्दलता प्यारी जाऊं उसकी वारी
आयी है दिखती ।
सोच इसकी वजह किसलिये आयी वह
गयी है जटीला-पास,
राई का इशारा पाकर हुआ सेवा को तत्पर
शेखर राधा को दास ।