१
हिरण्यांगी सखी आयी उसी क्षण,
राई कहे – कहां से हुआ आगमन ?
उसने कहा – नन्दीश्वर से मेरा आगमन
कुशल बताकर शीतल करो मेरा मन ।
गोदोहन करके कृष्ण दूध घर लाये
दास के हाथों माता को दूध भेज दिये ।
तेरे लिये ब्रजेश्वरी ने करके जतन,
मेरे हाथों भेजा है उत्कृष्ट मिष्ठान ।
धनिष्ठा ने कृष्ण अधरामृत मिलाया छुपाकर
मैने भोजनालय के कोने में रखा है लाकर ।
तब सखियों के साथ राई ने किया भोजन
और आकर किया सहचरियों से मिलन ।
दीन कृष्णदास की आशा करो पूरण,
तुम्हारे साथ नन्दालय को करूंगा गमन ।
२
सब धाइयों को दूध उबटने को
माता ने किया आदेश,
गोष्ठ के बाद सखाओं के साथ
कन्हैया लौटे सुवेष ।
जसोमती कहे, “मेरे राज-्दुलारे,
जाओ स्नान करके आओ,
सखाओं को लेकर प्यार में मगन होकर
जल्दी से भोजन करो ।
कमल-नयन करने को स्नान
बैठे वेदी पर,
करके जतन सिनान-वसन
दास पहनाये लेकर ।
रक्तक-पत्रक जैसे सेवक
कानु को स्नान कराये,
सुगन्धि-शीतल निर्मल-जल
वेदी पर धर दिये ।
लाकर मधु-कण्ठ उबटन कराये झट
श्री अंग करें मार्जन,
मदन-मोहन को कराते हैं स्नान
दासगण करके जतन ।
स्नान कराके अंग पोंछके
पहनाया पीतवास,
कानु किया भोजन उसके बाद आचमन
कहे शेखर दास ।