प्रातः लीला – हिरण्यांगी से बातें –

हिरण्यांगी सखी आयी उसी क्षण,

राई कहे  – कहां से हुआ आगमन ?

उसने कहा – नन्दीश्वर से मेरा आगमन

कुशल बताकर शीतल करो मेरा मन ।

गोदोहन करके कृष्ण दूध घर लाये

दास के हाथों माता को दूध भेज दिये ।

तेरे लिये ब्रजेश्वरी ने करके जतन,

मेरे हाथों भेजा है उत्कृष्ट मिष्ठान ।

धनिष्ठा ने कृष्ण अधरामृत मिलाया छुपाकर

मैने भोजनालय के कोने में रखा है लाकर ।

तब सखियों के साथ राई ने किया भोजन

और आकर किया सहचरियों से मिलन ।

दीन कृष्णदास की आशा करो पूरण,

तुम्हारे साथ नन्दालय को करूंगा गमन ।

सब धाइयों को              दूध उबटने को

माता ने किया आदेश,

गोष्ठ के बाद          सखाओं के साथ

कन्हैया लौटे सुवेष ।

जसोमती कहे,                “मेरे राज-्दुलारे,

जाओ स्नान करके आओ,

सखाओं को लेकर           प्यार में मगन होकर

जल्दी से  भोजन करो ।

कमल-नयन          करने को स्नान

बैठे वेदी पर,

करके जतन          सिनान-वसन

दास पहनाये लेकर ।

रक्तक-पत्रक         जैसे सेवक

कानु को स्नान कराये,

सुगन्धि-शीतल              निर्मल-जल

वेदी पर धर दिये ।

लाकर मधु-कण्ठ            उबटन कराये झट

श्री अंग करें मार्जन,

मदन-मोहन                  को कराते हैं स्नान

दासगण करके जतन ।

स्नान कराके          अंग पोंछके

पहनाया पीतवास,

कानु किया भोजन          उसके बाद आचमन

कहे शेखर दास ।