प्रातः लीला – १ – यदुनाथ दास

 

सबेरे आकर भकत-गण,

देखा गौर का चांद बदन ।

 

आंखें थोडी सी बन्द थीं,

नींद से नयन गुलाबी थीं ।

 

उंगलियों को मोड़कर, मोड़े तनु,

जैसे बिना गुण[1] के स्वर्ण-धनु ।

 

देखन को आवे भकत-गण,

वे मिले सबसे होकर प्रसन्न ।

 

बैठे गौरहरि चांद-मूंह  धोकर,

प्रिय भक्त बैठे उनको घेरकर ।

 

देखकर नदीया में ऐसा विलास,

यदुनाथ का मिटता नहीं प्यास ।

 


[1] धनुष का धागा