प्रातः लीला – १, २

राधा-माधव की प्रातःकालीन लीलायें जैसे जागरण इत्यादि –



नींद में नींद[1] गयी बाला,

रात भर जागकर हो गयी दुर्बला ।

 

जैसे बिजली की लता है यह रामा,

रति-रण के छरम[2]-घरम[3] से भरी श्यामा ।

 

अलस के मारे अंग अधीर,

संभलता नहीं पीतम का चीर[4]

 

मन-सिद्धि[5] साधीं[6] राधा,

आई अलक्षित[7], न मिली कोई बाधा ।

 

कहे कवि शेखर राय,

धर्म और शर्म के मारे वह रस[8] निभाये ।

 

इसी वक़्त राधा-मुख देखने को उत्सुका[9],

मुखरा आयी वहां, जैसे स्नेह की पेटिका[10]

 

वह बोलीं –  उठ बेटी, सूर्यदेव उदय हुये,

उठकर देख,  तेरे गुरुजन सभी जाग गये ।

 

धीरे धीरे अमृत-वचन बोल रहीं,

उठ बेटी, आज रविवार है, भूल गयी ?

 

सुमंगल स्नान करके पूजा-द्रव्य लेकर,

जाकर सूर्य-पूजा करो सावधान होकर।

 

जाकर सूर्यदेव से करो विनती,

 “मेरा अभीष्ट[11] पूर्ण करो, हे महामति” ।

 

रतन-मन्दिर में रसालस से सोयीं हैं,

मुखरा–वचन सुन, विशाखा उन्हें जगाती है ।

 

झट से बोली –  उठो सखि, मिटाओ अलस,

सुन रही मुगधिनी[12] धनी, पर ऐसा रति-रस,

 

कि जाग रहीं हैं, फिर भी नींद में हैं मगन,

क्युंकि देख रहीं थीं कोई सुहाना सा स्वपन ।

 

राज-हंसी तालाब-तरंग में हौले से चलती,

रत्न-पलंग पर वैसे ही राई-काया है डोलती ।

 

इसी वक़्त रति-मंजरी जानकर उचित समय,

चरणों को गोदी में भरकर सेवा करे रसमय ।

 

कितनी ही तरह से जगाये सभी सखियां,

अब उठ बैठीं और पांव रखीं  धरा पर धनिया[13]

 

अचानक मुखरा ने देखा अंग पर पीला वास,

विशाखा से बोली – “यह क्या ? लगे मोहे त्रास[14] !

 

सत्यानाश ! क्या कुलवधूओं का धर्म है ऐसा?

तुम्हारे सखी के अंग पर यह पीत-वास कैसा ?

 

कल शाम श्याम-अंग पर  देखा मैने यह वास,

कुलवती होकर, इसे लेकर, किया धर्म का नाश !”

 

विशाखा उसी क्षण, कहे वचन, “स्वभाव से अन्धी तु !

एक का कुछ करे, कुछ का कुछ लिखे, देखे कुछ और तु !

 

राधिका-वर्ण गलित-हेम[15] सम, पहिरे नील-वास,

वही वस्त्र सूर्य-किरण में  दीखे है पीत-वास ।

 

खिड़कीमें से देख अच्छे से, है धूप आ रही,

इसी भ्रम में न जाने क्युं तुम्हें शंका हो रही ?

 

हम ठहरीं शुद्ध-मति[16], तुम जरती[17] मुग्धा-मति[18] !” 

यदुनन्दन कहे – हाय !  विभ्रम-प्रमाद[19] अति !

 


[1] डूब

[2] श्रम; छरम-घरम = रति-युद्ध के श्रम की वजह से निकला पसीना

[3] घर्म, घाम, पसीना

[4] वस्त्र

[5] मन की आशा सिद्ध हुई – कन्हैया से मिलने की वासना पूरी हुई

[6] राधाने साधना करके मन की आशा पूरी की

[7] सबके लक्ष अर्थात नज़र बचाकर

[8] अपने घर लौटकर फिर से सो जाने की रीत, ताकि किसी को खबर न हो कि वे श्याम से मिलने गयी थीं – यह भी एक तरह का रस ही है

[9] उत्सुक का स्त्री-लिंग

[10] छोटा बक्सा

[11] मन की इच्छा

[12] मूर्खा, बेवकूफ – बेवकूफ इस लिये कि समय पर नहीं जागने से गुरुजनों को शक हो सकता है – उन्हें इसकी खबर नहीं है ।

[13] राई धनी

[14] भारी चिन्ता

[15] तपा हुआ सोना

[16] जिनका मन पवित्र या शुद्ध होता है

[17] बुढिया

[18] मुर्ख-बुद्धिवाले

[19] बहुत ज्यादा भूल