राधा-माधव की प्रातःकालीन लीलायें जैसे जागरण इत्यादि –
१
नींद में नींद[1] गयी बाला,
रात भर जागकर हो गयी दुर्बला ।
जैसे बिजली की लता है यह रामा,
रति-रण के छरम[2]-घरम[3] से भरी श्यामा ।
अलस के मारे अंग अधीर,
संभलता नहीं पीतम का चीर[4] ।
आई अलक्षित[7], न मिली कोई बाधा ।
कहे कवि शेखर राय,
धर्म और शर्म के मारे वह रस[8] निभाये ।
२
इसी वक़्त राधा-मुख देखने को उत्सुका[9],
मुखरा आयी वहां, जैसे स्नेह की पेटिका[10] ।
वह बोलीं – उठ बेटी, सूर्यदेव उदय हुये,
उठकर देख, तेरे गुरुजन सभी जाग गये ।
धीरे धीरे अमृत-वचन बोल रहीं,
उठ बेटी, आज रविवार है, भूल गयी ?
सुमंगल स्नान करके पूजा-द्रव्य लेकर,
जाकर सूर्य-पूजा करो सावधान होकर।
जाकर सूर्यदेव से करो विनती,
“मेरा अभीष्ट[11] पूर्ण करो, हे महामति” ।
रतन-मन्दिर में रसालस से सोयीं हैं,
मुखरा–वचन सुन, विशाखा उन्हें जगाती है ।
झट से बोली – उठो सखि, मिटाओ अलस,
सुन रही मुगधिनी[12] धनी, पर ऐसा रति-रस,
कि जाग रहीं हैं, फिर भी नींद में हैं मगन,
क्युंकि देख रहीं थीं कोई सुहाना सा स्वपन ।
राज-हंसी तालाब-तरंग में हौले से चलती,
रत्न-पलंग पर वैसे ही राई-काया है डोलती ।
इसी वक़्त रति-मंजरी जानकर उचित समय,
चरणों को गोदी में भरकर सेवा करे रसमय ।
कितनी ही तरह से जगाये सभी सखियां,
अब उठ बैठीं और पांव रखीं धरा पर धनिया[13] ।
अचानक मुखरा ने देखा अंग पर पीला वास,
विशाखा से बोली – “यह क्या ? लगे मोहे त्रास[14] !
सत्यानाश ! क्या कुलवधूओं का धर्म है ऐसा?
तुम्हारे सखी के अंग पर यह पीत-वास कैसा ?
कल शाम श्याम-अंग पर देखा मैने यह वास,
कुलवती होकर, इसे लेकर, किया धर्म का नाश !”
विशाखा उसी क्षण, कहे वचन, “स्वभाव से अन्धी तु !
एक का कुछ करे, कुछ का कुछ लिखे, देखे कुछ और तु !
राधिका-वर्ण गलित-हेम[15] सम, पहिरे नील-वास,
वही वस्त्र सूर्य-किरण में दीखे है पीत-वास ।
खिड़कीमें से देख अच्छे से, है धूप आ रही,
इसी भ्रम में न जाने क्युं तुम्हें शंका हो रही ?
हम ठहरीं शुद्ध-मति[16], तुम जरती[17] मुग्धा-मति[18] !”
यदुनन्दन कहे – हाय ! विभ्रम-प्रमाद[19] अति !
[1] डूब
[2] श्रम; छरम-घरम = रति-युद्ध के श्रम की वजह से निकला पसीना
[3] घर्म, घाम, पसीना
[4] वस्त्र
[5] मन की आशा सिद्ध हुई – कन्हैया से मिलने की वासना पूरी हुई
[6] राधाने साधना करके मन की आशा पूरी की
[7] सबके लक्ष अर्थात नज़र बचाकर
[8] अपने घर लौटकर फिर से सो जाने की रीत, ताकि किसी को खबर न हो कि वे श्याम से मिलने गयी थीं – यह भी एक तरह का रस ही है
[9] उत्सुक का स्त्री-लिंग
[10] छोटा बक्सा
[11] मन की इच्छा
[12] मूर्खा, बेवकूफ – बेवकूफ इस लिये कि समय पर नहीं जागने से गुरुजनों को शक हो सकता है – उन्हें इसकी खबर नहीं है ।
[13] राई धनी
[14] भारी चिन्ता
[15] तपा हुआ सोना
[16] जिनका मन पवित्र या शुद्ध होता है
[17] बुढिया
[18] मुर्ख-बुद्धिवाले
[19] बहुत ज्यादा भूल