७
( यशोमती मैया कन्हैया से कह रही है ) –
“राम का नील वसन क्युं पहनते हो?
सुरज उठा क्युं नहीं जगते हो?
ओ ब्रजकुल चान्द, लूं तेरा बलैया ।“
अंग-विभंग कर तन को मोड़ दिया ।[1]
“क्या गुलाल फेंका तेरी आंखों पे ?
कांटों की खरोंच क्युं हैं छाती पे?
नील-कमल सा देह हुआ है धूसर,
न जाने किस पापी ने डाला है नज़र !
मंगल स्नान कराऊंगी अपने हाथों से,
दही-भात खिलाऊंगी तुझे प्यार से “।
यशोमती की इतनी सारी बातें सुनकर,
कान्हा हंसने लगे वसन से मुंह ढंककर ।
गोविन्द दास कहे, “मां, चिन्ता न कर,
तेरा बेटा गौरी को पूजता है होके तत्पर ।“
८
भगवती आकर घर में बैठकर
देखा कान्हा है शयन
अंग पे हाथ फेरकर उसे जगाकर
किया सावधान [2]।
जल्दी से उठकर देवी को नमन कर
आंखों को रगड़ा हाथों से
आशीर्वाद लेकर बाहर आकर
तब मिला सखाओं से ।
सभी दासगण करके जतन
मुख-चांद को धुलाये,
देखकर वदन मर जाये मदन
धरती पर लेटकर रोये ।
सखाओं के संग कर विविध रस-रंग
आये हरि गोशाला में,
गौ-बछ्ड़े सब करे “हाम्बा” रव
वे दूध दुहें मटकी में ।
मोहन का दोहना है इतना मन-मोहना
कि आनन्द में आकूल गाई,
शेखर जतन से कहे गोपन से
इस पथ से आवेगी राई ।
[1] मैया की बातें सुनकर कन्हैया ने अपने अंग को stretch किया और तन को फिर से मोड कर सो गये ।
[2] ताकि वह नींद के वशीभूत होकर नील दुप का राज़ न खोल दे ।
[3] कामदेव