प्रातः लीला -७, ८

( यशोमती मैया कन्हैया से कह रही है ) –

“राम का नील वसन क्युं पहनते हो?

सुरज उठा क्युं नहीं जगते हो?

ओ ब्रजकुल चान्द, लूं तेरा बलैया ।“

अंग-विभंग कर तन को मोड़ दिया ।[1]

“क्या गुलाल फेंका तेरी आंखों पे ?

कांटों की खरोंच क्युं हैं छाती पे?

नील-कमल सा देह हुआ है धूसर,

न जाने किस पापी ने डाला है नज़र !

मंगल स्नान कराऊंगी अपने हाथों से,

दही-भात खिलाऊंगी तुझे प्यार से “।

यशोमती की इतनी सारी बातें सुनकर,

कान्हा हंसने लगे वसन से  मुंह ढंककर ।

गोविन्द दास कहे,  “मां, चिन्ता न कर,

तेरा बेटा गौरी को पूजता है होके तत्पर ।“

भगवती आकर              घर में बैठकर

देखा कान्हा है शयन

अंग पे हाथ फेरकर         उसे जगाकर

किया सावधान [2]

जल्दी से उठकर             देवी को नमन कर

आंखों को रगड़ा हाथों से

आशीर्वाद लेकर             बाहर आकर

तब मिला सखाओं से ।

सभी दासगण               करके जतन

मुख-चांद को धुलाये,

देखकर वदन         मर जाये मदन

धरती पर लेटकर रोये ।

सखाओं के संग              कर विविध रस-रंग

आये हरि गोशाला में,

गौ-बछ्ड़े सब                करे “हाम्बा” रव

वे दूध दुहें मटकी में ।

मोहन का दोहना           है इतना मन-मोहना

कि आनन्द में आकूल गाई,

शेखर जतन से               कहे गोपन से

इस पथ से आवेगी राई ।





[1] मैया की बातें सुनकर कन्हैया ने अपने अंग को stretch किया और तन को फिर से मोड कर सो गये ।

[2] ताकि वह नींद के वशीभूत होकर नील दुप का राज़ न खोल दे ।

[3] कामदेव