राई-कानू दर्शन

परस्पर दर्शन से दोनों हुये भाव-विभोर,

निरन्तर दोनों के नयन से बहे आनन्द-लोर ।

 

दोनों के तन पुलकित, गदगद बोल,

पसीनेसे भीग गये दोनों के निचोल ।

 

अपरूप दोनों के भाव-तरंग,

पल में घन कम्पन, फिर स्थिर अंग ।

 

चलना चाहे, पर नहीं चल पाये,

वैष्णव दास उनपे बलिहारी जाये ।