अपने घर में है राधा रसवती,
कानु के लिये विरहिनी है तड़पती ।
सखी बाट निरखे, होके आकूल,
विरह के ताप से होवे व्याकूल ।
गदगद बोले राई अति उत्कण्ठा में,
भाव में खोकर विशाखा को ले गोदी में ।
विशाखा से कहे, “मेरी सभी इन्द्रियां क्षोभित’’ ।
यदुनन्दन दास गाये परम-अनुराग चरित ।