सहचर संग गौरकिशोर,
मधुपान-भाव-रस में हुये विभोर ।
क्या कहना चाहे और क्या बताये,
यह तो कोई समझ ही ना पाये ।
प्रभु के रूप में कुछ बदलाव आये,
देखकर भकतगण विभोर हो जायें ।
डोल रहे अलसित अरुण नयन,
गदगद बोले मधुर वचन ।
एक पल चकित, एक पल विभोर,
देखकर गदाधर लिये अपने क्रोड़ ।
कहे माधव, “यह अपरूप भाषा,
नदिया में नित्य ऐसे विलासा ।“