श्री गौरचन्द्र का मधुपान के भाव में खो जाना

 

सहचर संग गौरकिशोर,

मधुपान-भाव-रस में हुये विभोर ।

 

क्या कहना चाहे और क्या बताये,

यह तो कोई समझ ही ना पाये ।

 

प्रभु के रूप में कुछ बदलाव आये,

देखकर भकतगण विभोर हो जायें ।

 

डोल रहे अलसित अरुण नयन,

गदगद बोले मधुर वचन ।

 

एक पल चकित, एक पल विभोर,

देखकर गदाधर लिये अपने क्रोड़ ।

 

कहे माधव, “यह अपरूप भाषा,

नदिया में नित्य ऐसे विलासा ।“