कांचन कान्ति कोमल कलेवर, विहरे सुरधूनी कूल,
तरुण तरुण तरु देखकर तोड़े कुन्द करबी के फूल।
सभी समवय सखा-संग सरस रभस रंग में भोर,
गजवर-गमन को गंजये गति मन्थर, प्रेम-रस विभोर
गदाधर को ले गोदी पर, अपरूप गौरांग के रंग,
पिछले प्रेम से परमानन्दमय, पुलक-पटलमय अंग ।
निरूपम नदिया नगर में निति निति नव नव विलास,
दीन पे दया करो, दूरित दुःख हरो, कहे गोविन्द दास ।