सहचरों के साथ गोरा नटराज,
झूम झूमकर नाचे कीर्तन समाज ।
सुरधनी के तट अति मनोहर,
गौरचन्द्र धरे गदाधर-कर ।
कितने ही यंत्र के मिलन कर,
बजाये मृदंग करताल धर ।
सुमधुर राग रसाल गावे,
“वाह ! वाह !” कह कोई हर्षित होवे ।
गदाधर बांये, दायें नरहरि,
राय शेखर कहे, “ जाऊं बलिहारी” ।