श्री गौरचन्द्र – रासविहार के आवेश में –

 

 

सहचरों के साथ गोरा नटराज,

 

झूम झूमकर नाचे कीर्तन समाज ।

 

 

 

सुरधनी के तट अति मनोहर,

 

गौरचन्द्र धरे गदाधर-कर ।

 

 

 

कितने ही यंत्र के मिलन कर,

 

बजाये मृदंग करताल धर ।

 

 

 

  सुमधुर राग रसाल गावे,

 

“वाह ! वाह !” कह कोई हर्षित होवे ।

 

 

 

गदाधर बांये, दायें नरहरि,

 

राय शेखर कहे, “ जाऊं बलिहारी” ।