रत्न-मन्दिर में नागर-नागरी बैठे सखियन माझ[1],
नागर का इशारा वृन्दा देवी ने समझ कर किया काज ।
तब सुवासित उत्कृष्ट मधु लाकर दिये,
इस मधु के आगे सुधा भी लजाये ।
खुद पान करे कान्हा औरों को भी पिलाये,
ऐसे प्रेम का तरंग छूटा कि कहन ना जाये ।
वैसे ही प्रेम मधुरातिमधुर, उस पर मधुपान रंग,
हंसी मज़ाक से भरपूर, उठे रंगीन प्रेम के तरंग ।
डोल डोलकर पड़त सखियां, “घ घूमे ब बैठ न सकई’’
ऐसा कहकर अपने कुंज में जाकर सब सो गयीं ।
राधा-माधव हाथ पकड़कर कुंज में किये प्रवेश,
राधा-मोहन कहे दोनों में रतिरण भाव-विशेष ।
नागर-नागरी का केलि विलास,
देखकर मन्मथ को होवे त्रास ।
विनोदिनी चूमे नागर-बयान[2],
मदन महासागर में भरे पांच बाण ।
उन्मत्त मनोरथ, गये सब लाज,
नुपूर किंकिनी कंगन बाज ।
माधव-माधवी पूराये विलास-साध,
अखण्ड पीयुष रस बहे अगाध ।
श्रम-जल से भरे दोनों के शरीर,
बीजन[3] करे शेखर, बहाये प्रेम-नीर ।
श्रम-जल से भीगे नील-पीतवास,
दोनों के श्री अंग लगे उदास[4] ।
दोनों का पूरा हुआ अभिलाष,
बैठीं राई श्याम-वाम[5] पास ।
सेवन परायणा सहचरी आकर,
चंवर बीजन करे खुश होकर ।
सुवासित पानी एक सखीने दिया,
मुख से चर्वित ताम्बूल लिया ।
अलस से भरकर दोनों सोये तांहि[6],
रतिरण से थककर नींद भर आयी ।
कुछ देर बाद जाग गये कान,
सखियों के कुंज में किये पयान[7] ।
सभी सखियों के संग किये रतिरण,
इतना अपरूप कि न जाये कथन ।
आये कानू फिर से राई के पास,
माधव[8] को हुआ अधिक उल्लास ।
[1] बीच
[2] वदन, चेहरा
[3] पंखे से हवा करना
[4] अंग फीका पड़ने की वजह से उदास लग रहे हैं ।
[5] बाईं तरफ
[6] वहां पर
[7] प्रयाण
[8] कवि