सब सखियन मिल रस गीत गाये,
हंस हंसकर कुण्ड तट आये ।
जल में प्रवेश किये सखीगण,
जल में समर[1] करत दोनों जन ।
बिखरे कुन्तल[2] अंग में लगी आग,
जब युद्ध हुआ गहरा, तो नागर गये भाग ।
सखियों ने घेर लिया श्यामर चन्द,
देखकर गोविन्द दास को हुआ आनन्द ।
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जल केलि की साधा[3]
कीं सुवदनी राधा ।
पहिनकर चीर
उतरीं नीर ।
देखे युवती समाज
बीच सोहे युवराज ।
सरसी सलिल में,
बैठीं शील से ।
करिनी के संग
करे करिवर रंग ।
दोनों दोनों मेल,
खेलें जल-खेल ।
निपुणा सखियां,
घेर लिये कन्हैया ।
सखी फेंके नीर,
श्याम खींचे चीर ।
कोई सखी हारी,
तो देवे गारी ।
कोई दूर भागकर
देखें चमककर ।
कानू ने हाथ पकड़ा
राधा को खींचकर उतारा ।
सलिल अगाधा,
ले चले राधा ।
पकड़ कर श्याम-अंग,
राई भासे उनके संग ।
पतली चीर,
दीखे सारा शरीर ।
देखकर कान,
को चुभे पांच-बान ।
धनी को पकड़कर
चूम लिये जकड़कर ।
धनी मधुर हंसकर
चली जाये दौड़कर ।
न माने हरि वाधा,
खींच लाये राधा ।
कमलिनी जैसे
मिल गयी श्याम से ।
सखियन मिली
करत केलि ।
नागर संग,
कितने ही रंग ।
देखकर शोभा,
शेखर लोभा ।
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नहाकर उठे सखीसंग नागरी-नागर राय,
वसन निचोड़कर पोंछे तन नया वेश बनाये ।
विनोदिनी का वेश बड़े अच्छे से किया कान,
केश संवारकर जूड़ा बांधे, तिलक किया निरमाण ।
मांग-टिका पहिनाया, उर पर मृगमद चित्र निशान,
चरणों पर प्रेम से चित्र बनाये, सुन्दर वेश निरमाण ।
कितने जतन कर वसन पहिनाये, नुपूर दिये प्रीत,
गोविन्द दास कहे, “ वह रूप देखकर मदन होवे मुरछित’’ ।
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रतन भवन में कुंज-दासीगण
फल-मूल ले आये,
संस्कार कर थाली भर-भर
उन्होंने रख दिये ।
बदाम छुहारा द्राक्षा मधुरा
शालू पीलू नारियल,
खरबूजा खीरनी बदरी[4] विरौनी,
कदली[5] कन्द मूल ।
आम और पनस विविध सुरस
अननस और सीताफल,
पेरू मृणाल पानीफल ताल
कितने ही मीठे फल ।
बतासा बूंदिया लड्डू हरे हिया[6]
मिश्री, फिरनी,
छेना पनीर सरभाजा, खीर,
मंडा पद्मचिनी ।
अमृत केलिका कर्पूर-मालिका
लड्डू मनोहरा,
करके जतन रसाला मक्खन
विविध प्रकारा ।
देखकर नागर रस का सागर,
बटु को वहां ले आये,
द्विज-कुमार भोजन-सम्भार,
देखकर सर हिलाये ।
उसे रखा दायें सुबल को बायें
बैठे रसिक राय,
देयत सुमुखी रंगीन सब सखी
देखे शेखर राय ।
[1] समर = युद्ध ; समर ‘ स्मर ‘ (रतिकेलि) का अपभ्रंश भी हो सकता है ।
[2][2] काले घने केश
[3] इच्छा
[4] बेर
[5] केला
[6] हृदय को चुराये