झूले से उतरकर देखा गोपियों ने
कि अब हो गयी है बेला
फूल तोड़्ने को चले जल्दी
सभी आभीर-बाला ।
फल-फूलों से लदी शाखायें
लोटकर स्पर्शे मूल,
सब सखियन मिलकर जोश में
तोड़े विविध फूल ।
सभी बगीचे हैं मणियों से जड़े,
पराग से भरे हैं बाट,
करके मधूपान अलि[1] गायें गान,
मोर-मोरनी करे नाट ।
सुगन्धी करबी[2] तोड़े राधिका
अशोक किंशुक जवा,
स्थल-कमल को तोड़ें सभी
सुरज जैसी आभा ।
जाती जुथी[3] तोड़ा सबने
मल्लिका मालती सुघर,
पुन्नाग केसर तोड़कर नागर
बनाया गुलदस्ता सुन्दर ।
रसिक-नागर, गुणों के सागर
करे कुसुम-रचना,
हंस-हंसकर आये लेकर
राई को है देना ।
बाहें उठाकर राई सुवदनी,
तोड़े लवंग फूल,
रसिक शेखर हुये विभोर
देखकर बाहें-मूल ।
गुलदस्ता लेकर जतन से नागर,
राई के पास आये,
धनी के आंचल में भूलकर
फूलों संग बांसुरी भी बांध दिये ।
पाकर मुरली राधा हरषित
दिया विशाखा को,
विशाखा ने जतन से रखा गोपित
हंसी देख शेखर को ।
सखियां मिलकर मुरली लेकर,
चली गयीं निकुंज में,
नागर शेखर को आया चक्कर
जब देखा मुरली नहीं हाथों में ।
पानी पानी होकर यहां वहां देखे
ताके राई का मुख,
राधिका-चतुरी करके चातुरी
पाये अनुपम सुख ।
मदनमोहन को आया चेतन
सुस्थिर किया चित्त,
मुरली-हरण, राई है कारण,
वे समझ गये गोपियों की रीत ।
राई रसवती सखियों से मिलकर
मुरली चोरी की है आज,
रंग बढ़ाने नागर को शेखर,
बता दिया सब राज़ ।
इशारा समझकर नागर आकर
पकड़ा राई के कर,
उनका रंग-ढंग देखकर
राधा को लगा डर ।
भय से बाला गयी भूल सब कला,
उसने चुप्पी साध ली,
अंग हुआ शिथिल, धक्धक् करे दिल,
आंखें बन्द कर ली ।
देखकर लक्षण नागर उसी क्षण,
धनी को कहा ‘’चोर !!’’
खींचकर कांचुली मांगे मुरली
पर मदन से हुआ भोर ।
धनी कहे, “प्रीतम, ना करो सितम,
ललिता ले गयी बंसी,
तुम्हारी हरकत देखकर नागर,
गोपियां उड़ाये हंसी ।
राई के वचन सुनकर उसी क्षण
चले श्याम लेकर दिल में आस,
ललिता जानकर बोली इशारे से,
मुरली विशाखा के पास ।
ललिता की बात समझकर
विशाखा बोली तुनककर,
‘’ विशाखा मेरा नाम,
मोहे छेड़ना न कभी श्याम !
तुम्हारी मुरली तो है
चम्पक की गोदी में,
जाओ उसे ढूंढकर लाओ,
और न सताओ हमें ।“
बातें सुनकर त्रास में आकर
चम्पकलता बोल पड़ई,
“तुंगविद्या के पास मुरली रखकर
न जाने इन्दुलेखा कहां गयी !’’
सचकित चित्रा चली जल्दी से
देखकर यह सब रंग,
रंगदेवी के पास आकर बैठ गयी,
सुदेवी भी थी उसके संग ।
नागर को न सूझे कुछ भी,
सबको पकड़कर पूछे,
करके युक्ति युवती सभी,
बैठ गये माधवी के नीचे ।
हंसकर ललिता बताये बतियां,
सुनो ऐ नागर राज,
“बांस का एक टुकड़ा कठोर,
इसमे किसीका नही कुछ काज ।
एक लकड़ी के पीछे रहे हो दौड़,
तुम्हें आती नहीं शरम ?
मांग लो जो चाहिये हमसे
हम करेंगे तुम पे रहम ।”
उसकी बातें सुनकर
शेखर रॉय करे हास,
“सुनो नागर, न करो डर,
मुरली धनी के पास ।”
सखियों से कानू पूछे बार बार
किसने चुरायी मुरली हमार ?
मधुर मधुर कहे विनोदिनी राई,
“कहां मुरली छोड़ी और कहां आकर चाही ?
न जाने तुम्हें सूझा यह कैसा उपाय ?
बेकार का धन तेरा, कौन चुराये ?’’
रोती सूरत लेकर देखे कान,
“सखियों, मेरी मुरली दो दान” ।
‘’अब मुरली तो है निकुंज-माझ,’’
गोविन्द दास कहे, “जाने युवती-समाज’’ ।
“ऐ धनी सुन्दरी, कहूं मैं तोहे,
दो मुरली धनी, बचाओ मोहे” ।
सारा जीवन तेरा है श्याम्,
मुरली पे गाऊं मैं तेरा यश-नाम ।
मुरली बिना मेरा जीवन हुआ भार,
शीतल मनोरथ मुरली हमार ।
वह सब गुणमय मुरली चली गयी !
हाय ! हाय ! मेरी तो जान ले गयी !’’
सुनकर कानू का ऐसा विलापन,
धनी का दिल है खुश, फिर भी जागे कम्पन ।
बढ़कर धनी नागर को लिया बाहों में,
इशारा पाकर शेखर बंसी दिया हाथों में ।
मुरली मिला जब राई के पास,
नागर शेखर के दिल में उल्लास ।
फिर से सब सखियों ने किया प्रयाण,
नागरी के हाथ पकड़कर चले नागर कान्ह ।
वनदेवी ने वन में किया सुसाज,
सेवा करे सतत जहां ऋतुराज ।
निति निति नव नव शोभा होवे,
कहे माधव, “दोनों को वन भाये” ।
[1] भ्रमर
[2] एक तरह का गुलाबी फूल
[3] जूही फूल