राधा-माधव रसालस –
१
(बलराम दास)
मिट गया चन्दन, टूट गये गहने, छूटे जूडे के बंधन,
वस्त्र स्खलित, कुसुम विगलित, काले[1] पडे दोनों मुख-चन्द्र ।
हरि ! हरि ! देखो इन श्यामल-गौरि !
स्पर्श-उत्तेजना से दोनों मुर्छित, सो रहे हिय-हिय[2] जोड़ी ।
राई की बांयी जांघ को नागर दांये चरण से दबाये,
नवल किशोरी को आगोश में लेकर मुख पे मुख रख सोये ।
मदन-शर से घायल , सुन्दरी ने किया पिय-हिय में प्रवेश,
कब बलराम नयन भर देखेगा अमृत में होकर आवेश ।
२
(माधव दास)
बगीचे की देवी ने देखा निशि अवसान,
तो ब्राह्मणों से कहा करने को गान ।
शारी-शुक से कहा- इन्हे जगाओ झट,
सूर्योदय होगया तो खुल जायेगा पट ।
वानरीयों से फिर से किया आदेश,
तुरन्त आवाज दो, हुआ निशि अवशेष ।
सुनकर वन-देवी के ये बोल,
बाग में उठा बडा शोरगुल ।
देखने को ऐसा निशि प्रभात,
माधव दास जोड़े सिर पर हात ।
3
(शेखर राय)
दस दिकों को निर्मल किया प्रकाश,
देख सखियों के मन में उठा त्रास ।
आम पर कोयल बोले, कदम पर मयूर,
अनार पर बैठ तोता बोले मधुर ।
अंगूर पे बैठ्कर बोले कपोत-कपोती,
ताराओं के संग छुप गया तारापति ।
कुमुदिनी को भौरें ने त्यागकर ,
कमल से मिलने को हुआ तत्पर ।
शारी बोली – राई, जागो, चलो अपने घर,
सभी जाग गये, क्या तुम्हें नहीं कोई डर?
शेखर ने शेखर[3] से कहा हंसकर,
चोर होकर साधु जैसा पड़ा है सोकर[4] !
[1] काजल पसरने की वजह से
[2] हिय = ह्रिदय
हिय-हिय = ह्रिदय प्ए ह्रिदय को जोड्कर
[3] रसिक शेखर श्याम्सुन्दर
[4] रात भर विलास कर के देखो कै्से सरल सा चेहरा बनाकर सोया पड़ा है !
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