निशान्त-लीला (राधा-गोविन्द) – ४

(शेखर राय)

 

आलियां[1] जागीं अलियों[2] के गान से,

चारों तरफ देखीं चकित नयनों से ।

 

 

चंचल चित्त से चलीं निकुंज की ओर,

कुसुम शेज पर दोनों सो रहे विभोर ।

 

 

विगलित[3] कुन्तल[4], विगलित वास,

देखकर सखियां करे परिहास ।

 

 

जागो जागो सखि, प्यारे श्यामल,

दस दिक हुये देखो सुन्दर निरमल ।

 

 

कुमुदिनी से भौंरें कमल को गये,

गुरुजन भी अब तक बाहर आये ।

 

 

हम सब तेरा चेहरा कब तक ताकेंगे,

अब और न रहेंगे, घर को चलेंगे ।

 

 

यह सुन वे जाग उठे, पर रहे आपस में भोर,

नयन न खोलें, रहें तन-मन से जोड ।

 

तब सखियों को एक युक्ति सूझ गयी,

वे झूठ बोल्कर उन्हें डराने लग गयीं ।

 

 

दोनों उठ बैठे अतिशय डर कर,

शेखर द्वार खोले हंस हंस कर ।



[1] सखियां

[2] भौरें

[3] खुले

[4] जूडा