१
सबेरे आकर भकत-गण,
देखा गौर का चांद बदन ।
आंखें थोडी सी बन्द थीं,
नींद से नयन गुलाबी थीं ।
उंगलियों को मोड़कर, मोड़े तनु,
जैसे बिना गुण[1] के स्वर्ण-धनु ।
देखन को आवे भकत-गण,
वे मिले सबसे होकर प्रसन्न ।
बैठे गौरहरि चांद-मूंह धोकर,
प्रिय भक्त बैठे उनको घेरकर ।
देखकर नदीया में ऐसा विलास,
यदुनाथ का मिटता नहीं प्यास ।
[1] धनुष का धागा