इधर वह किंकरी, राधा का उत्तरी[1] पीतवास खींच लिया,
झट से नीलाम्बर राधा के वक्ष पर तेज़ी से डाल दिया ।
विशाखा-वचन सुन मुखरा उस क्षण हुई लज्जित अति,
मुझे बहुत काम है, फालतु वक्त किसे है ? कहकर गई शीघ्र गति ।
रात्रि-अवसान, सब दासीगण ने जल्दीसे किया काज[2],
वेश का मन्दिर[3], सजाकर सुन्दर, रखा वेश का साज[4] ।
ऐसी ही है दासियों की रीत,
जानकर मर्म[5], करते हैं कर्म, इसीमें उनकी जीत ।
दशन-माजनी[6] रसना-शोधनी[7] रखा थाली भरकर,
कर्पूर सहित गन्ध चूर्णित रख दिया जतन कर ।
निर्मल जल सुगन्धी शीतल गागर में भरकर,
मुख-पखालन[8] को, स्नान करने को, रखा वेदी पर ।
गामछा[9] धोकर, निजल[10] कर, रखा अलग से,
तेल और आवंला, लेकर श्यामला, आयी चुस्ती से ।
उबटन[11] करि, कनक-मंजरी लाई होकर धीर,
मंजरी रतन[12] करके जतन लाई सिनान-चीर[13] ।
वहां गुणवती, कर्पूर-मालती, का खुश्बू जल में भर,
विधि-अगोचर[14], अनेक उपहार, लायी थाल भरकर ।
विचित्र वसन, उसको ढक्कन, बनाया परम सुख से[15],
राई का इंगित[16], रखा गोपत[17], ताकि और कोई न देखे ।
कर्पूर ताम्बूल, मालती-माल, शेखर जतन से रखा,
वह पीत-वसन, लाकर उसी क्षण अपने घर में रखा ।
[1] उत्तरीय, दुपट्टा
[2] काम
[3] वह कमरा जहां राधाजी वेश-भूषा करती हैं
[4] वेश की तैयारी जैसे पोशाक़ रखना, गहनों को सजाकर रखना आदि ।
[5] दिल की बात
[6] टूथ-ब्रश
[7] जीभ-साफ करनेवाला
[8] पखालन = धोना
[9] बहुत पतला तौलिया
[10] जल को निकाल दिया
[11] उबटन = साबून बनाकर
[12] ्रत्न-मंजरी
[13] स्नान के लिये उपयोगी वस्त्र
[14] विधि अर्थात ब्रह्माजी के भी अगोचर अर्थात मालूम नहीं
[15] मंजरी ने उस पीले वसन (विचित्र वसन) को बड़ा सुखी होकर अपना ढक्कन (दुपट्टा) बनाया
[16] इशारा
[17] गुप्त ; राई ने इशारा किया कि इसे छुपाकर रखना ।