प्रातः लीला – श्री राधा नन्दालय में जाकर रसोइ, भोजन आदि करती है –

करके सोलह सिंगार                हुई खुश अपार

देख कर अपना रुख़,

कृष्ण अधरामृत             पाकर हर्षित

हुआ परम-सुख ।

रंगलता बोली               सुन मेरी भोली

राजा की चहेती

कुन्दलता प्यारी             जाऊं उसकी वारी

आयी है दिखती ।

सोच इसकी वजह          किसलिये आयी वह

गयी है जटीला-पास,

राई का इशारा पाकर              हुआ सेवा को तत्पर

शेखर राधा को दास ।