सखी-वचन सुनकर चन्द्रमुखी लजाकर
चेहरे को आंचल में है छुपाती,
कानू के प्यार को करके याद,
राह में फिर से है चलती ।
पहुंचे कुंड के तट जहां कानू मिले झट,
सुन्दरी-संग बैठे बकुल-तले,
तन की ज्योति जैसे हो मोती
बैठ तरु-तल मीठे बोल बोले।
राई-अंग कान्ति-माला करे दस-दिक उजियाला,
स्वर्ण-वर्ण हुआ तीर,
देखकर अपनी मालकिन, कुण्ड हुआ पुलकित,
आनन्द से उछला नीर ।
श्याम-श्यामा का दरशन है ऐसो मन-भावन,
कि झर झर झरे नयान,
वृन्दादेवी भी आयी, और ली उनकी बलई,
सखियां गाये रस-गान ।