निकुञ्ज-विलास

दोनों जन विलासे कुंज के माझ,

रसवती गोरी और रसिक-वर-राज ।

 

एक दुजे को देख दोनों मुस्कुराये,

उन्हें देख सखियां अधिक उल्लसये ।

 

चंवर डुलावत कोई सखी हसीन,

ताम्बुल खिलावत होके रंगीन ।

 

कितनी ही मस्ती और हास-परिहास,

आनन्द में मगन हुआ वल्लभ दास ।