निशान्त-लीला – राधा-गोविन्द – ५,६







(शेखर राय)

रात के अन्त में नागरी-नागर बैठे शय्या पर,

यह देख सखियां हंस कर आयीं मन्दिर-भीतर ।

‘केलि-कल्पतरु[1] लगे रस-प्रकाश करने,

रंगीन रात में जो भी हुआ, उसे लगे बखाने ।

जैसे जैसे रसीलि रंगीलि रात की Read more >