५
(शेखर राय)
रात के अन्त में नागरी-नागर बैठे शय्या पर,
यह देख सखियां हंस कर आयीं मन्दिर-भीतर ।
‘केलि-कल्पतरु[1] लगे रस-प्रकाश करने,
रंगीन रात में जो भी हुआ, उसे लगे बखाने ।
जैसे जैसे रसीलि रंगीलि रात की … Read more >
५
(शेखर राय)
रात के अन्त में नागरी-नागर बैठे शय्या पर,
यह देख सखियां हंस कर आयीं मन्दिर-भीतर ।
‘केलि-कल्पतरु[1] लगे रस-प्रकाश करने,
रंगीन रात में जो भी हुआ, उसे लगे बखाने ।
जैसे जैसे रसीलि रंगीलि रात की … Read more >