प्रातः लीला – गौरचन्द्र के रसालस, राधारानी के रसोद्गार

गौरचन्द्र – रसालस –

सबेरा होते ही,      शेज[1] त्याजहिं[2],

उठे गौर-विधु[3],

विगलित वेश,       अस्त-व्यस्त केश,

जैसे कोई नयी कुल-वधू[4]

देखें भकतगण       मेरे प्रियजन,

इसलिये उठ बैठे,

डाल रहे मधु,        कहे मृदु-मृदु,

रजनी Read more >