गौरचन्द्र – रसालस –
१
सबेरा होते ही, शेज[1] त्याजहिं[2],
उठे गौर-विधु[3],
विगलित वेश, अस्त-व्यस्त केश,
जैसे कोई नयी कुल-वधू[4] ।
देखें भकतगण मेरे प्रियजन,
इसलिये उठ बैठे,
डाल रहे मधु, कहे मृदु-मृदु,
रजनी … Read more >
१
सबेरा होते ही, शेज[1] त्याजहिं[2],
उठे गौर-विधु[3],
विगलित वेश, अस्त-व्यस्त केश,
जैसे कोई नयी कुल-वधू[4] ।
देखें भकतगण मेरे प्रियजन,
इसलिये उठ बैठे,
डाल रहे मधु, कहे मृदु-मृदु,
रजनी … Read more >