७
( यशोमती मैया कन्हैया से कह रही है ) –
“राम का नील वसन क्युं पहनते हो?
सुरज उठा क्युं नहीं जगते हो?
ओ ब्रजकुल चान्द, लूं तेरा बलैया ।“
अंग-विभंग कर तन को मोड़ दिया ।[1]
“क्या … Read more >
७
( यशोमती मैया कन्हैया से कह रही है ) –
“राम का नील वसन क्युं पहनते हो?
सुरज उठा क्युं नहीं जगते हो?
ओ ब्रजकुल चान्द, लूं तेरा बलैया ।“
अंग-विभंग कर तन को मोड़ दिया ।[1]
“क्या … Read more >
४
अन्दर की बात कह रही हूं मैं फिर से फंस गयी हूं
उसने जो डाला प्रीत का फन्दा,
रात-दिन रोती रहती हूं सिर्फ यही सोचती रहती हूं
ध्यान में श्याम-मुख-चन्दा ।
दिल पे दिल, प्रेम ऐसा है आंखों में … Read more >
१
सबेरा होते ही, शेज[1] त्याजहिं[2],
उठे गौर-विधु[3],
विगलित वेश, अस्त-व्यस्त केश,
जैसे कोई नयी कुल-वधू[4] ।
देखें भकतगण मेरे प्रियजन,
इसलिये उठ बैठे,
डाल रहे मधु, कहे मृदु-मृदु,
रजनी … Read more >
इधर वह किंकरी, राधा का उत्तरी[1] पीतवास खींच लिया,
झट से नीलाम्बर राधा के वक्ष पर तेज़ी से डाल दिया ।
विशाखा-वचन सुन मुखरा उस क्षण हुई लज्जित अति,
मुझे बहुत काम है, फालतु वक्त किसे है ? कहकर … Read more >
१
नींद में नींद[1] गयी बाला,
रात भर जागकर हो गयी दुर्बला ।
जैसे बिजली की लता है यह रामा,
रति-रण के छरम[2]-घरम[3] से भरी श्यामा ।
अलस … Read more >
१
सबेरे आकर भकत-गण,
देखा गौर का चांद बदन ।
आंखें थोडी सी बन्द थीं,
नींद से नयन गुलाबी थीं ।
उंगलियों को मोड़कर, मोड़े तनु,
जैसे बिना गुण[1] के स्वर्ण-धनु ।
देखन को आवे भकत-गण,
वे मिले सबसे … Read more >
आधा पग चलकर उनका वह लौटना….
हाय ! एक दूसरे को फिर से वह चूमना……
दोनों की आंखों से जल-धारा बहई,
रो-रोकर सखियां चल न सकई।
भीत चकित चारों ओर निहारतीं[1] ,
खु्ले कुसुम और भारी कुन्तल[2] संभालतीं… Read more >
८
अपने अपने मन्दिर को लौटते हुये, मुड़ मुड़ कर एक-दूजे को देखते हुये,
दिल में प्रेम-खीर-सागर उछलते हुये, सघन आंसू से नयन भीगते हुये ।
ओह माधव ! विदाय-प्रणाम कर रही हूं,
तेरा प्रेम साथ लिये जा रही हूं,… Read more >
७
राई को निरुपम सजाया कान,
देख धनी-मुख सजल हुये नयान ।
कक्खटी वानरी पेड़ पर ठहरी,
” जटीला आ गयी “, फिर से पुकारी ।
सुनकर दोनों के चमके चित,
वेश और गहने हुये विपरीत ।
भूलकर पीताम्बर लिया … Read more >
५
(शेखर राय)
रात के अन्त में नागरी-नागर बैठे शय्या पर,
यह देख सखियां हंस कर आयीं मन्दिर-भीतर ।
‘केलि-कल्पतरु[1] लगे रस-प्रकाश करने,
रंगीन रात में जो भी हुआ, उसे लगे बखाने ।
जैसे जैसे रसीलि रंगीलि रात की … Read more >