प्रातः लीला -७, ८

( यशोमती मैया कन्हैया से कह रही है ) –

“राम का नील वसन क्युं पहनते हो?

सुरज उठा क्युं नहीं जगते हो?

ओ ब्रजकुल चान्द, लूं तेरा बलैया ।“

अंग-विभंग कर तन को मोड़ दिया ।[1]

“क्या Read more >

प्रातः लीला – राधारानी की रस-भरी बातें – भाग ४,५,६

अन्दर की बात कह रही हूं                मैं फिर से फंस गयी हूं

उसने जो डाला प्रीत का फन्दा,

रात-दिन रोती रहती हूं                   सिर्फ  यही सोचती रहती हूं

ध्यान में श्याम-मुख-चन्दा ।

दिल पे दिल, प्रेम ऐसा है          आंखों में Read more >

प्रातः लीला – गौरचन्द्र के रसालस, राधारानी के रसोद्गार

गौरचन्द्र – रसालस –

सबेरा होते ही,      शेज[1] त्याजहिं[2],

उठे गौर-विधु[3],

विगलित वेश,       अस्त-व्यस्त केश,

जैसे कोई नयी कुल-वधू[4]

देखें भकतगण       मेरे प्रियजन,

इसलिये उठ बैठे,

डाल रहे मधु,        कहे मृदु-मृदु,

रजनी Read more >

प्रातः लीला – ३

इधर वह किंकरी, राधा का उत्तरी[1] पीतवास खींच लिया,

झट से नीलाम्बर राधा के वक्ष पर तेज़ी से डाल दिया ।

 

विशाखा-वचन सुन मुखरा उस क्षण हुई लज्जित अति,

 मुझे बहुत काम है, फालतु वक्त किसे है ? कहकर Read more >

प्रातः लीला – १, २

राधा-माधव की प्रातःकालीन लीलायें जैसे जागरण इत्यादि –



नींद में नींद[1] गयी बाला,

रात भर जागकर हो गयी दुर्बला ।

 

जैसे बिजली की लता है यह रामा,

रति-रण के छरम[2]-घरम[3] से भरी श्यामा ।

 

अलस Read more >

प्रातः लीला – १ – यदुनाथ दास

 

सबेरे आकर भकत-गण,

देखा गौर का चांद बदन ।

 

आंखें थोडी सी बन्द थीं,

नींद से नयन गुलाबी थीं ।

 

उंगलियों को मोड़कर, मोड़े तनु,

जैसे बिना गुण[1] के स्वर्ण-धनु ।

 

देखन को आवे भकत-गण,

वे मिले सबसे Read more >

निशान्त लीला – बलराम दास – ९

  


 आधा पग चलकर  उनका वह लौटना….


हाय ! एक दूसरे को फिर से वह चूमना……


 


दोनों की आंखों से जल-धारा बहई,


रो-रोकर सखियां चल न सकई।


 


भीत चकित चारों ओर  निहारतीं[1] ,


खु्ले कुसुम और भारी कुन्तल[2] संभालतींRead more >

निशान्त-लीला – माधव दास – ८

 

अपने अपने  मन्दिर को लौटते हुये,  मुड़ मुड़ कर एक-दूजे को देखते हुये,

दिल में प्रेम-खीर-सागर उछलते हुये, सघन आंसू से नयन भीगते हुये ।

 

ओह माधव ! विदाय-प्रणाम कर रही हूं,

तेरा प्रेम साथ लिये जा रही हूं,Read more >

निशान्त लीला – उद्धव दास – ७

 

 


 

 

 

राई को निरुपम सजाया कान,

देख धनी-मुख सजल हुये नयान ।

 

कक्खटी वानरी पेड़ पर ठहरी,

” जटीला आ गयी “, फिर से पुकारी ।

 

सुनकर दोनों के चमके चित,

वेश और गहने हुये विपरीत ।

 

भूलकर पीताम्बर लिया Read more >

निशान्त-लीला – राधा-गोविन्द – ५,६







(शेखर राय)

रात के अन्त में नागरी-नागर बैठे शय्या पर,

यह देख सखियां हंस कर आयीं मन्दिर-भीतर ।

‘केलि-कल्पतरु[1] लगे रस-प्रकाश करने,

रंगीन रात में जो भी हुआ, उसे लगे बखाने ।

जैसे जैसे रसीलि रंगीलि रात की Read more >