नवद्वीप – ३

मेरे तो तीन प्रभु हैं – निताईचांद, गौरसुंदर और सीतानाथ । मेरी प्रार्थना है कि वे मुझपर कृपा करके अपनी लीला माधुरी का दर्शन कराएं । और सिर्फ इतना हि नहीं, मुझे हमेशा अपने संग रखें ।

 

निताईचांद और अद्वैतप्रभु तो किसी का दोष दर्शन करते ही नहीं । मैं अपने आप को उनके श्री चरणों में समर्पण कर रहा हूँ । मैं तो सभी दोषों का खान हूँ। मुझ में ज़रा भी सद्गुण नहीं है । फिर भी मेरी प्रार्थना है कि हे प्रभु, मुझ पतित पर कृपा किजीये और मुझे इन उत्तम वैष्णव गणों के साथ रखिए । इन सब वैष्णवों के साथ रहकर निशांत काल में मैं गौरांग का रस आलस का दर्शन करूँगा । प्रभु के चहरे पर कितने ही विभाव, अनुभाव खेल रहे होंगे । कभी उनका चेहरा हर्षित होगा, तो कभी उसपे विषाद होगा । कभी तो भयभीत दिखाई देंगे और कभी उनके होठों से मृदु वचन सुनाई देगा ।

 

पलंग से उठकर मेरे प्रभु जब प्रातः कृत्य के लिए जाएँगे, तब मैं श्री गुरुदेव के आदेश अनुसार सुवासित जल की झारी और कर्पूर चूरण ले कर उनके पीछे पीछे जाऊँगा । जब माँ आदेश करेगी तब प्रभु आलस को त्याग कर ,  माता के श्री चरणों में प्रणाम करेंगे । फिर वे सभी भक्तों के संग बैठकर बताएँगे कि उन्होंने रात में कौन कौन सी प्रेम केली का दर्शन किया । स्वरूप दामोदर उनके भाव आवेश जानकर कोई गीत गाएँगे और हम सब उस गीत को सुनकर हर्षित होंगे ।

 

प्रातः कृत्य समापन के बाद प्रभु चौकी पर बैठेंगे । मैं खुशबूदार तेल से उनका अंग मर्दन करूँगा । फिर जब मैं उबटन लगाऊँगा, तो प्रभु गंगाजी के किनारे भक्तों को संग लेकर जल केली करेंगे । स्नान के बाद मैं उन्हें पतली धोती पहनाऊँगा । और फिर प्रभु सभी प्रिय जनों के साथ घर लौटेंगे । अपने घर लौटने के बाद वे आसन पर बैठेंगे और मैं उनके सभी अंगों पर भूषण पहनाऊँगा ।

 

प्रिय गदाधर आकर भागवत पाठ करेंगे । मेरे प्रभु सभी भागवतों के साथ बैठकर ग्रंथ-भागवत का आस्वादन लेंगे । भागवत श्रवण करते वक्त उनके अंग में कितने ही भाव खेल रहे होंगे !! वे अपने आप को संभाल नहीं पाएँगे । तब मैं अन्तःपूर मे जाकर शचीमाता से आदेश लेकर प्रभु को सभी भक्तों के साथ जलयोग कराऊँगा । जलयोग के वक्त कितने हास-परिहास होंगे ।

 

जब प्रभु भक्तों के साथ भोजन करेंगे तब वे अपने पूर्व भाव में मगन हो जाएँगे । मैं पंखा लेकर एक कोने में खड़ा रहूँगा और यह दृश्य देखकर सुख के सागर में मगन हो जाऊँगा ।

 

फिर जब प्रभु का भोजन समापन होगा तो मैं उन्हें आचमन कराऊँगा । उनके मुख में ताम्बूल दूँगा और फिर उन्हें विश्राम कराऊँगा । उनके गुलाबी चरणों को संवाहन करूँगा और सेवानन्द में मगन हो जाऊँगा ।

 

जब पूर्वाह्न का वक्त आयेगा , तब सभी भक्तों के साथ प्रभु गोष्ठावेश में मगन हो जाएँगे । सभी भक्तों के साथ प्रभु भी गोचारण के लिए उतावले हो जाएँगे । लेकिन फिर वे नवद्वीप के भाव मे लौट आएँगे और श्री कृष्ण के मधुर गुणावलियों को अपने पाँच इन्द्रियों से आस्वादन करेंगे ।

 

प्रभु कहेंगे कि मैं सूर्य पूजा के लिए जा रहा हूँ । कहकर वे बगीचे में जाएँगे  और स्फुरण में देखेंगे कि उनके आगे आगे श्री कृष्ण चल रहे हैं । उनके चंद्र मुख पर कितने ही अनुपम भाव प्रकट होंगे जैसे कि आनंद , लज्जा , क्रोध और वाम्य । कभी तो उनके चहरे पर शरारत की हँसी खिल जाएगी । वे गदाधर की तरफ देखेंगे और फिर अपने आप को श्याम सुंदर जानकर उनके साथ रंगीले होकर परिहास करेंगे ।

 

कल्प तरु के नीचे रत्नवेदी पर वे भक्तों के साथ बैठेंगे । गदाधर के हाथ पकड़कर सभी भक्तों को साथ लेकर वे बगीचे में भ्रमण करेंगे । कितने ही हास परिहास की बातें होंगे । वहाँ वे होली खेलेंगे , कभी झूला झूलेंगे, कभी तो मधुपान के लीला का अभिनय करेंगे , कभी तो जल केली करेंगे और मैं अपनी इन आँखों से प्रभु की लीलाएँ देखूँगा ।

 

फिर बगीचे में प्रभु भोजन करेंगे और मुझे अपना दास समझकर अपने पास बुलाएँगे । मैं सभी सेवकों के साथ प्रभु की सेवा करूँगा । और बड़े उल्लास के साथ उनका दिया हुआ प्रसाद अमृत पाऊँगा ।

 

शयन से उठकर मेरे प्रभु श्री गौरांगसुन्दर माधवी मंच पर बैठेंगे और गदाधर के साथ पांसा खेलेंगे । इस खेल में उनको बड़ा आनन्द आयेगा । फिर वे नदिया नगरी में घू्मने निकलेंगे । अपराह्न के वक्त मैं वही लीला देखूँगा ।

 

प्रभु अपने घर लौटकर आसन पर बैठेंगे । मैं भी बाकी सेवकों के साथ प्रभु की सेवा करूँगा । जब नवद्वीप की गौएँ लौटेंगी, तब उनकी ध्वनि सुनकर , प्रभु अपने आप को राधा मान बैठेंगे और राधा भाव में वे प्रासाद के ऊपरी मंज़िल पर चढेंगे । “हाय हाय , कहाँ मेरा प्राणनाथ” कहकर प्रभु मूर्छित हो जाएँगे । उनके शरीर पर स्तम्भ, कम्प और रोमांच दिखाई देगा । आनंद और पुलक से उनका अंग भर जाएगा । उनको घेरकर सेवक लोग प्रलाप करेंगे ।

 

फिर गौरहरि अपने आप को संभालकर घर के अंदर जाएँगे और माँ को सुखी करने के लिए जलपान करेंगे । प्रभु स्वयं हरि है, लेकिन फिर भी वे भगवान के पूजा पाठ करके भक्तों से साथ संकीर्तन पे निकलेंगे । नदिया नगरी में संकीर्तन करके वे शाम के वक्त, अर्थात प्रदोष के वक्त लौटेंगे और भक्तों को साथ लेकर भक्त-सभा में बैठेंगे । जो भी उस भक्त-सभा में सशामिल होगा, वह प्रेम से हंसता हुआ , नाचता हुआ देखाई देगा । प्रभु के साथ जो भी भक्त गण होंगे, वे सभी श्रीकृष्ण के रूप और गुण में मत्त होंगे ।

 

फिर प्रभु सबको विदाई देकर भोजन पे बैठेंगे और भोजन के अंत होने पर आचमन कर पलंक पर जा बैठेंगे । जब प्रभु विश्राम कर रहे होंगे, मैं उनका चरण संवाहन करूँगा । बहुत जल्दी ही प्रभु उठ जाएँगे और अब वे कुछ अंतरंग भक्तों को लेकर श्रीकृष्ण के रूपामृत का आस्वादन करेंगे । प्रभु इन भक्तों के साथ श्रीकृष्ण के बारे में जी भरकर अनुराग भरी बातें करेंगे ।

 

राधाराणी के भाव में विभोर होकर प्रभु श्रीवास के घर जाएँगे । प्रभु ऐसे छिपते छिपाते जायेंगे जैसे कि वे अभिसार के लिए जा रहे हो। श्रीवास के घर जाकर प्रभु बड़े आनंद के साथ बैठेंगे । अपने भाव में मगन होकर पार्षदों के साथ वे बगीचे में विहार करेंगे ।

 

गंगाजी के किनारे जाकर वे मृदंग और मंजीरे लेकर रास लीला के गीत गाएँगे । सभी भक्त रास लीला के भाव में मगन हो जाएँगे ।

 

फिर प्रभु प्रेम में उन्मत्त होकर श्रीवासांगन में उच्च संकीर्तन करेंगे । सभी भक्त बड़े रंगीले होकर प्रभु के संग ऊँची आवाज़ में संकीर्तन करेंगे । कोई हंस रहा होगा, कोई गा रहा होगा, कोई तो नाचते हुए लोट्पोट खाएँगे , कोई फिर ज़मीन से उठ्कर कृष्ण प्रेम मे रो रहे होंगे । संकीर्तन में नॄत्य, गीत, ताल, सब कुछ कितना अनुपम होगा और प्रभु भक्तों मे विहार करेंगे ।

 

जब संकीर्तन के बाद प्रभु विश्राम करेंगे , तब मैं उनके सामने आम की थाली लाऊँगा । वह शुभ दिन कब मुझे नसीब होगा ? प्रभु आम की थाली देखकर बड़े ही अनंदित हो जाएँगे और भक्तों को बुला बुलाकर उनमें यह प्रसाद बांट देंगे और खुद भी आनंद के साथ भोजन करेंगे । फिर गदाधर के हाथ पकड़कर वे गंगाजी के किनारे हंसते हुए जाएँगे । भक्तों के साथ जल केली करेंगे, वन भोजन करेंगे और फिर अपने घर आकर वे शयन करेंगे ।

 

यह दीन कृष्णदास सिर्फ यही प्रार्थना करता है कि  – हे प्रभु कृपा कर मुझे आपकी चरण-सेवा दीजिए । फिर हे मेरे प्रभु निताइ चांद और अद्वैत प्रभु , मुझपर इतनी कृपा कर दीजिए कि मैं तुम्हारे साथ श्री गौरांग की सेवा कर पाऊँ ।

 

तुम्हारी ये लीलाएँ अभी मैं  संक्षेप में देख रहा हूँ ।आअपके श्री चरणों में गुज़ारिश है कि, जितने उत्तम वैष्णव गण है , उनके साथ रहकर मैं अविराम इन लीलाओं को देख सकूँ,  और उचित समय पर सेवक दासों के साथ तुम्हारी सेवा कर सकूँ । तुम्हें सुखी करना चाहता हूं, बस यही मेरे दिल की तम्मन्ना है । मैं इन लीलाओं को  बहुत थोड़े में वर्णन कर रहा हूँ , लेकिन बाद में मैं इन्हीं लीलाओं को विस्तारित रूप से  नवद्वीप में देखना चाहता हूँ । मेरे नाथ, मुझपे इतनी कृपा कर दीजिए कि मैं हमेशा इन लीलाओं को बारीकी से दर्शन कर सकूँ । मैं अपराधी हूँ और सभी पतितों में मैं ही सबसे बड़ा पापी हूँ , लेकिन प्रभु, तेरा नाम सुनकर , एक आशा की किरण मेरे दिल में भी जाग उठी है । मैं दातों तले तृण पकड़कर प्रार्थना करता हूँ कि, प्रभु, मेरी इस अभिलाषा को पूरी करें ।

 

 

One thought on “नवद्वीप – ३

  1. Radhe Radhe! Every paragraph, taken properly in the heart, is a rasa-sindhu! It shows the deepest aspirations for a Gour-bhakta! If one reads this in presence of self realized devotees, tears will drench him/her more than sweat in summer (@45-46 °C)!

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