सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,
गोधुलि धुसर श्याम कलेवर
जानू-लम्बित वनमाल ।
बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,
आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।
पीताम्बर धर मुख निन्दे विधूवर
नव-मंजरी अवतंस
अंगद-केयूर चुड़ा मयूर,
बजाये मोहन-वंस[2] ।
ब्रजवासी-जन बाल-वृद्ध गण
अपलक मुख-शशि देखें ;
भूखा चकोर जैसे चांद पा गया वैसे
उनके चांद-मुख निरखें ।
गोगण को गोठ में भेजकर घर चले नन्द्दलाल,
आकूल यशोमती को आया प्राण, कहे मोहन रसाल ।
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गोठ में गैया रखकर राम-दामोदर जाकर
प्रणमे जननी-चरण,
जसोदा करे चुम्बन दृष्टि रोके आंसूवन
आशीष पाये दोनों जन ।
राई घर में बैठकर तुलसी को बुलाकर
सन्देश दिये उसके कानों में,
सखियन लेकर राधा पूराये मन की साधा
हम न लिख पायें पन्नों में ।
तुलसी उलसी[3] होकर जाये तोहफा लेकर
तुरन्त गयी नन्द के देश,
छूपाकर ले गयी थाला धनिष्ठा को देकर बाला[4]
बोली राई का सन्देश ।
समझकर सन्देश का मर्म शेखर करे कर्म
बिछाये मनोरम शय्या,
बैठेंगी रसवती-राज लेकर सखियन-समाज
होंगी रसभरी बतियां ।
सांझ समय घर आवत ब्रजसुत-वर
जसोदा का आनन्दित चित्त,
दीप जलाकर थाली पे रखकर
आरती उतारे, गाये गीत ।
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झलकत वह मुखचन्द,
बीच में कन्हैया चारों तरफ गोपियां
रति-पति को हो गया धन्द[5] ।
घण्टा-झांझर-ताल[6] मृदंग वीणा रसाल
बजाये सखियां जयजयकार !
कुसुम बरखत रमणी हरखत
आनन्द का लग गया बाज़ार !
श्याम का सूरत मनोहर मूरत
गले बनमाला विराज,
कान्हा प्रिया कहये वह रूप जो न देखये
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जसोमती करे आरति विधान
गाये सुखमय मंगल-गान ।
सुखी होकर द्विजों को दें बहुत दान,
दासगण खड़े होकर करें अवधान[9] ।
वेदी पर रखा शीतल नीर,
कोई ले आया पतली चीर ।
दोनों को लेकर वेदी पे बिठाये,
रतन-भुषण कोई हटाये ।
राम-कानू पहिने स्नान-चीर,
गोधूली धुलाये शीतल नीर ।
कोई मले अंग पे सुगन्धी उबटन,
नन्द के सेवक करें मधुर-मर्दन ।
सुगन्धि जल से कराये स्नान,
दोनों के अंग पोंछे सेवक-सुजान ।
नील-पीत वसन पहिने दोनों रंग,
केसर-चन्दन से लेपये अंग ।
कहे कवि शेखर रसिक-सुजान,
बैठे दोनों करके सिनान[10] ।
७०
मौका जानकर तैयार होकर
आयी धनिष्ठा प्यारी;
जशोदा के भवन में करके जतन
बिछाये आसन न्यारी ।
सुगन्धि जल करके शीतल
भर लायी स्वर्णिम् झारी,
राई के व्यन्जन रखा उसी क्षण
जतन से बनायी थीं प्यारी ।
सूप मूंग दाल मरीच रसाल
और जो कुछ थे रसोई,
सुन जशोदा के वचन लायी उसी क्षण
देखकर रीझे कानाई ।
स्नान समापन कर बलाई हंसकर
चले अपने घर,
बात कानाई के न माने बलाई
चले गये राम-सुन्दर ।
तब करके जतन सुखद-आसन
पे बैठे यदुराय,
प्यार से मैया ने भोजन कराया
तुलसी पंखा हिलाय ।
मां करे विनय “सुनो मेरे तनय,
तुमसे कहूं एक वचन,
तुम्हारे कारण करके जतन
राजकुमारी ने किया पक्वान ।
अरूचि त्यजकर भोजन पा कर
दूर करो मेरा दुख,
तुम्हारा भोजन सुनकर उसी क्षण
राई को मिलेगा सुख ।
मां के वचन सुन नन्द-नन्दन
खाये परम-सुख,
उठकर आचमन करके जतन
ताम्बूल दें मुख ।
कानू के चेहरे को धनिष्ठा निहारे
है वह चतुरी-बाला,
इशारा समझकर चतुर-नागर
दिये चम्पक-माला ।
संकेत लेकर धनिष्ठा आकर
तुलसी को किया समर्पण,
थाला-माला सब लेकर तुलसी तब
राधा को बताये सब कथन ।
संकेत-वाणी समझकर तरुणी
हुई प्रसन्न-चित्त,
ताम्बूल-बीटिका पाकर राधिका
हो गयी हरषित ।
विविध रस-गान करके सखियन
चलीं अपने घर,
वक़्त जानकर थाला-माला लेकर
गोपन करे शेखर ।
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जल-पान करके कान मूंह में दिये सुगन्धि-पान
करने चले गौ-दोहन,
गाभियों के थन हैं भरे जोर से हाम्बा-रव करे
कानू के बाट करे नीरिक्षण ।
आये गोकुलारविन्द गौ देखें मुखारविन्द
और भी गोप हैं उनके संग,
छोड़ दिये वत्स सब गैया करे हाम्बा-रव
गोविन्द-गौ दोनों खुश-रंग ।
देखकर कानू-मुख गौ को मिला महा-सुख,
बछ्ड़े पिये हरषित मन,
पिशंगी, कस्तिनी, मणी को दोहे कानू गुण-मणि
बाकी गैया दोहे गोपगण ।
दोहन हुआ समापन लेकर दूध का बरतन
मां के पास लौटे मोहन,
अट्टाली[11] पे खड़े होकर देख रहा था शेखर
उसने जाना, “हो गया दोहन” ।
[2] मोहन-बांसूरी
[3] उल्लसित, हर्षित
[4] लड़की (तुलसी)
[5] confusion
[6] करताल
[7] यौवन
[8] बेकार
[9] दर्शन
[10] स्नान
[11] balcony