शय्या-सेवा की प्रार्थना

 

अटरिया पर सुन्दर बगीचा है । उसके बीचोबीच मैं आसन बिछाऊँगी । तुम सखियों के साथ खूशी से उसपर बैठोगी । कब वह दिन आएगा जब तुम्हारे मुख में ताम्बूल अर्पण करूँगी और तुम्हारे चरणों को वक्ष में धरकर संवाहन Read more >

वृन्दावन – १२

 

३९

 

गर्मी और बरसात के मौसम कितने मधुमय होते हैं । पेड़ और लताएँ , फल और फूलों से झुक जाते हैं । श्री कुण्ड के तट पर पेड़ खिल उठते हैं और सुन्दर दिखने लगते हैं । तोते और Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण का अभिसार और मिलन

 


सखियों के आगमन         देखकर हर्षित मन

                धनी उठ बैठे शेज पर,

नयन मेलकर        मूंह धोकर

                सजे दिल भरकर ।

 

धनी हैं गुणवती             सभी कलाओं मे कलावती,

                जानकर श्याम का उद्देश,

मदन-मोहन के मन         को हरने के कारण

                धरतीं हैं निरुपम Read more >

श्री श्री गौरचन्द्र का अभिसार-आवेश

कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,

                चितवन कुटील सुधीर,

बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन

                जावत सुरधुनी तीर ।

श्री श्री राधा-कृष्ण की राज-सभा, भोजन और विश्राम –

 

अटरिया पे उठ कर देखे कानू,

मन्दिर के छत पर धनी, पुलकित तनू ।

 

दूर से दोनों एक दूजे को देखें,

अवश हुये तन, कैसे जिया रखें ?

 

गोधूलि धुसर श्याम कलेवर

सखाओं के साथ आये नन्द-दुलाल,

गोधुलि धुसर                श्याम कलेवर

जानू-लम्बित वनमाल ।

 

बार बार शृंग-वेनू रव सुनकर दौड़ आये ब्रजवासी,

आरती उतारें वधूगण, देखें मधुर मुस्कान-हंसी ।

 

पीताम्बर धर                मुख निन्दे विधूवर

नव-मंजरी अवतंस

अंगद-केयूर                  चुड़ा मयूर,

बजाये मोहन-वंस[2]Read more >

उत्तर-गोष्ठ की लीला –

राधा सरसी         होकर हरषी

                भवन में बैठीं बाला,

सुरस व्यंजन         किया रन्धन,

                भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।

 

ढंककर वसन से             रखकर जतन से

                करने गयी स्नान,

दासियों के संग              हुआ रस-रंग

                करते हुये स्नान ।

 

अन्दर जाकर        बहुत जतन कर

                पहिना Read more >

उत्तर गोष्ठ की आवेश में महाप्रभु

 

जय शची-नन्दन भुवन आनन्द !

नवद्वीप में उछले नव-रस-कन्द !

 

गो-क्षूर धूल देखकर, सुन वेणू-निसान,

“अपरूप श्याम मधुर-मधुर-अधर मृदु मुरली-गान”

 

ऐसा कहकर भाव-विवश गौर, कहे गदगद बात,

“श्याम सुनागर वन से आवत सब सहचरों के साथ ।

 

मेरे तन मन Read more >

श्री श्री राधा-कृष्ण – शुक-शारी पाठ और पांसे का खेल –

राधा-माधव उठे शयन से अलस-अवश शरीर,

वनेश्श्वरी उस क्षण करके जतन लायी शारी-शुक कीर[1]

 

शुक-शारी को देखकर दोनों को हुआ आनन्द,

राई के इशारे पे वृन्दा पढ़ावे गीत-पद्य सुछन्द[2]

 

कानू के रूप लक्षण         शुक करे वर्णन,Read more >

श्री श्री राधा माधव के भोजन-अवशेष

रतन थाल भरई             चीनी केले मलाई

                लायीं  रसवती राई,

शीतल कुंज तल             खुशबू सुपरिमल

                बैठे नागर कन्हाई ।