गोराचांद को जलकेलि याद आया,
पार्षदों के साथ खुद जल में उतर आया ।
एक दूसरे के अंग पर जल फेंक कर मारे,
गौरांग गदाधर को जल से मारे ।
जल-क्रीड़ा करे गोरा हरषित मन,
कोलाहल कलरव करे सब जन ।
गौरांगचांद की लीला कहन ना जाये,
बासुदेब घोष तांहि गुन गाये ।